Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Kailashchandra Shastri
Publisher: Prakashchandra evam Sulochana Jain USA
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तत्त्वार्थ सूत्र
अध्याय -
है।
तत्त्वार्थ सूत्र * *** ****###अध्याय - शरीर के द्वारा जो आत्मा के प्रदेशों में कम्पन होता है उसको कर्मयोग कहते हैं । अतः सूत्र का अर्थ हुआ - विग्रहगति में कर्मयोग होता है। उस कर्मयोग के द्वारा ही जीव नवीन कर्मों को ग्रहण करता है तथा मृत्यु स्थान से अपने जन्म लेने के नये स्थान तक जाता है ॥२५॥
अब यह बताते हैं कि जीव और पुदगलों का गमन किस कर्म से होता है
अनुश्रेणि गतिः ||२६|| अर्थ- लोक के मध्य से लेकर ऊपर, नीचे और तिर्यक् दिशा मे आकाश के प्रदेशों की सीधी कतार को श्रेणी कहते हैं जीवों और पुद्गलों को गति, आकाश के प्रदेशों की पंक्ति के अनुसार ही होती है, पंक्ति को लांध कर विदिशाओं में गमन नहीं होता।
शंका - यहाँ तो जीव का अधिकार है, पुदगल का ग्रहण यहाँ कैसे किया?
समाधान - यहाँ 'विग्रहगती कर्मयोगः' सूत्र से गति का अधिकार है। फिर इस सूत्र में 'गति' पद का ग्रहण करने के लिए ही किया गया है । तथा आगे अविग्रहा जीवस्य' इस सूत्र में जीव का अधिकार होते हुए जो जीव का ग्रहण किया है। उससे भी यही अर्थ निकलता है कि यहाँ पुद्गल की गति भी बतलाइ गयी है।
विशेषार्थ- यद्यपि यहाँ जीव और पुदगल की गति श्रेणी के अनुसार बतलायी है किन्तु इतना विशेष है कि किसी भी जीव पुदगलों की गति श्रेणी के अनुसार नहीं होती । जिस समय जीव मर कर नया शरीर धारण करने के लिए जाता है उस समय उसकी गति श्रेणी के अनुसार ही होती है । तथा पुद्गल का शुद्ध परमाणु जो एक समय में चौदह राजु गमन करता है वह भी श्रेणी के अनुसार ही गमन करता है। शेष गतियों के लिए कोई नियम नहीं है ॥ २६ ॥
अब मुक्त-जीव की गति बतलाते हैं
अविग्रहा जीवस्य ||२७|| अर्थ- मुक्त जीव की गति मोड़े रहित होती है। अर्थात् मुक्त जीव श्रेणी के अनुसार ऊपर गमन करके एक समय मे ही सिद्ध क्षेत्र मे जाकर ठहर जाता है।
शंका - सूत्र मे तो केवल जीव कहा है फिर उसका अर्थ मुक्त जीव कैसे ले लिया?
समाधान - आगे के सूत्र में 'संसारी' का ग्रहण किया है अतः इस सूत्र मे जीव से मुक्त जीव लेना चाहिए ॥ २७॥
संसारी जीव जब परलोक को जाता है तो उसकी गति कैसी होती है,यह बतलाते हैं - विग्रहवती च संसारिण: प्राक् चतुर्व्यः ||२८||
अर्थ-संसारी जीव की गति चार समय से पहले मोड़ सहित होती है। अर्थात् संसारी जीव जब नया शरीर धारण करने के लिए गमन करता है तो श्रेणी के अनुसार ही गमन करता है। किन्तु यदि मरण स्थान से लेकर जन्म स्थान तक जाने के लिए सीधी श्रेणी नहीं होती तो स्थान के अनुसार एक, दो या तीन मोड़ लेता है। प्रत्येक मोड़ में एक समय लगता है। अतः एक मोड़ वाली गति मे दूसरे समय में जन्म स्थान पर पहुँचता है, दो मोड़े वाली गति में तीसरे समय में और तीन मोड़ वाली गति में चौथे समय में अपने जन्म स्थान पर पहुँच जाता है। सूत्र में आये 'च' शब्द से यह अर्थ लेना चाहिए कि संसारी जीव की गति बिना मोड़े वाली भी होती है।।२८॥
आगे बतलाते हैं कि बिना मोड़े वाली गति में कितना काल लगता है