Book Title: Tark Sangraha Author(s): Sudarshanlal Jain Publisher: Siddha Saraswati Prakashan View full book textPage 3
________________ तर्कसंग्रहः . विषय-सूची प्राक्कथन (1) उद्देशप्रकरण-[मङ्गलाचरण 1, पदार्थ 2, द्रव्य 4, गुण 5, कर्म 8, सामान्य 9, जाति और उपाधि 10, विशेष 11, अयुतसिद्ध 12, अभाव 13 __(2 द्रवलक्षण प्रकरण--[पृथिवी 16, जल 18, तेज 19, सुवर्ण का तैजसत्व 20, वायु 21, बाय की प्रत्यक्षता 22, आकाश 23, काल 24, दिशा 25, आत्मा 27, मन 29, मन की अणुता 30] (3) गुणलक्षण प्रकरण-[रूप 30, चित्ररूप 32, रस 32, गन्ध 33, स्पर्श 34, पाकजापाकजविचार 35, पीलुपाक 36, पिठरपाक 36, संख्या 36, परिमाण 38, पृथक्त्व 38, संयोग 39, . विभाग 40, परत्वापरत्व 41, गुरुत्व 42, द्रवत्व 42, स्नेह 43, शब्द 43, बुद्धि 44, अनुभव 46, यथार्थानुभव 48, करण, कारण और कार्य 49, समवायि, असमवायि और निमित्तकारण 54, करण 59, (क) प्रत्यक्षप्रमाण परिच्छेद-प्रत्यक्षप्रमाण 59, निर्विकल्पक-सविकल्पक 62, सन्निकर्ष 65, प्रत्यक्ष का निष्कृष्ट लक्षण 70, (ख ) अनुमानप्रमाण परिच्छेद–अनुमान, अनुमिति, परामर्श, व्याप्ति और पक्षधर्मता 71, अनुमान के भेद-स्वार्थ और परार्थ 75, पश्चावयव 78, अनुमितियों का करण 80, लिङ्ग के भेद 81, पक्ष, सपक्ष और विपक्ष 84, हेत्वाभास 86, सव्यभिचार 88, विरुद्ध 91, सत्प्रतिपक्ष 92, असिद्ध 93, उपाधि 16, बाधित 97, (ग) उपमानप्रमाण परिच्छेद-उपमान और उपमिति 98, (घ)शवप्रमाणपरिच्छेद-शब्दप्रमाण 101, वाक्यार्थज्ञान के हेतु 104, . वाक्य के भेद 106, शाब्दज्ञान, 107, (ङ) अवशिष्टगुण निरूपण- // अयथार्थानुभव (संशय, विपर्यय और तर्क) 108, स्मृति 111, सुख-दुःख 111, इच्छा-द्वेष-प्रयत्न 112, धर्माधर्म 112, आत्ममात्रविशेषगुण 113, संस्कार 114 ] (1) कर्माधिशेषपदार्थलक्षण प्रकरण-[कर्म 116, सामान्य 116 विशेष 117, समवाय 117, अभाव 118, उपसंहार 121] (5) तालिकायें-[ हेत्वाभास 87, द्रव्यविभाजन 123, द्रव्यविभाजन के अन्य प्रकार 124, प्रमुख आचार्य 124] निधाय हृदि विश्वेशं विधाय गुरुवन्दनम् / बालानां सुखबोधाय क्रियते तर्कसंग्रहः / / अनुवाद-जगदीश्वर ( जगत्कर्ता परमेश्वर ) को हृदय में धारण कर गुरु की वन्दना करके [ न्यायशास्त्र में अनभिज्ञ ] बालकों को सुखपूर्वक (अनायासेन ) ज्ञान कराने के लिए तर्क संग्रह लिखा जा रहा है। व्याख्या-'निधाय०' इत्यादि श्लोक द्वारा ग्रन्थकार अन्नम्भट्ट ग्रन्थ की निर्विघ्न परिसमाप्ति तथा शिष्टाचार का पालन करने के लिए अभीष्ट देवता एवं गुरु को नमस्कार करते हुए अनुबन्धचतुष्टय (अवश्य ज्ञातव्य चार विषय) का प्रतिपादन करते हैं। अनुबन्धचतुष्टय हैं--(१) विषय (तर्कशास्त्र या न्याय-वैशेषिक. शास्त्र के सात पदार्थ), (2) अधिकारी (न्याय-वैशेषिकशास्त्र के पदार्थों के ज्ञानाभिलाषी अल्पज्ञ बालक), (3) प्रयोजन (न्यायशास्त्र का सुखपूर्वक बोध तथा परम्परया मोक्ष-प्राप्ति) और (4) सम्बन्ध (प्रतिपाद्यप्रतिपादकभाव सम्बन्ध ) / प्रश्न-मङ्गल से ग्रन्थ-परिसमाप्ति का क्या सम्बन्ध है ? नास्तिकादि के ग्रन्थों में मङ्गल न होने पर भी उसकी परिसमाप्ति देखी जाती है तथा मङ्गल के होने पर भी कादम्बरी की अपरिसमाप्ति / उत्तर-कादम्बरी में विघ्न-बाहुल्य था जिससे मङ्गल होने पर भी पूर्ण नहीं हुई तथा किरगावली में ग्रंन्थ के बाहर मङ्गल किए जाने की सम्भावना है। वस्तुतः मङ्गल को विघ्नध्वंस के प्रति कारण माना जाता है और विघ्नध्वंस को ग्रन्थ-परिसमाप्ति के प्रति /Page Navigation
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