Book Title: Tark Sangraha
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Siddha Saraswati Prakashan

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Page 2
________________ प्रकाशक:संदीप कुमार सिद्ध सरस्वती प्रकाशन 1, सी० एस० कालोनी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी-२२१००५ संस्करण : प्रथम मूल्य : पाँच रुपये प्राक्कथन 'काणादं पाणिनीयं च सर्वशास्त्रोपकारकम्' अर्थात् कणाद और पाणिनि के शास्त्र सर्वशास्त्रों के उपकारक हैं। कणाद मुनि वैशेषिक दर्शन के तथा गौतम मुनि न्यायदर्शन के प्रतिष्ठापक हैं। न्यायदर्शन के अनुसार प्रमाण, प्रमेय आदि सोलह पदार्थों के तत्त्वज्ञान से तथा वैशेषिक दर्शन के अनुसार द्रव्य, गुण आदि सात पदार्थों के तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अधिकांश विषयों में समानता होने से दोनों को सामान्यतः 'न्यायशास्त्र' भी कहा जाता है। प्रमाणों के विषय में न्यायदर्शन का तथा प्रमेयों के विषय में वैशेषिकदर्शन का अनुसरण किया जाता है। अन्नम्भट्ट (१७वीं शताब्दी) कृत तर्कसंग्रह में यही पद्धति अपनाई गई है। न्याय-वैशेषिक शास्त्रों का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए तर्कसंग्रह' बहुत उपयोगी है, अतः इसे विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में रखा गया है। लोकप्रियता के कारण तर्कसंग्रह पर अनेक टीकायें लिखी गई हैं। वे टीकायें या तो अत्यन्त संक्षिप्त हैं या दुरूह / अतः छात्रों के लिए एक विस्तृत किन्तु सरल व्याख्या की आवश्यकता का अनुभव करके प्रस्तुत 'मनीषा' हिन्दी व्याख्या लिखी गई है। इसमें दीपिका, पदकृत्य, न्यायबोधिनी, सीता आदि विभिन्न संस्कृत टीकाओं का सारतत्व लिया गया है। ___तर्कसंग्रह को सुबोधार्थ कई भागों में विभक्त किया गया है। मूल भाग के कोष्ठक [ ] में प्रश्न को जोड़ा गया है। मूलानुसार हिन्दी में अनुवाद देकर व्याख्या दी गई है। बीच-बीच में प्रश्नोत्तरशैली को अपनाया गया है। यथावसर नव्यन्याय के पारिभाषिक शब्दों को भी समझाया गया है। तालिकाओं के द्वारा भी विषय स्पष्ट किया गया है। ___ आशा है, प्रस्तुत पुस्तक का यह प्रथम संस्करण छात्रों के लिए उपयोगी होगा। प्रमाद अथवा शीघ्रता के कारण हुई अशुद्धियों को पाठकगण क्षमा करेंगे। गुरुजनों के आशीर्वाद तथा सुधीजनों एवं छात्रों के बहुमूल्य सुझाव आमन्त्रित हैं। वीरेन्द्र कुमार वर्मा सुदर्शन लाल जैन मुद्रक : सुधीरकुमार चतुर्वेदी सुदर्शन मुद्रक, 63/42, उत्तर बेनियाबाग, वाराणसी

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