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अध्यात्म-साधना के विविध पहलू
साधना का महत्त्व
मानव जीवन एक कल्पवृक्ष है । वह अगणित शक्तियों से, असंख्य सत्परिणामों से परिपूर्ण है । मानव-जीवन में केवल आत्मा ही नहीं है, शरीर भी है, मन भी है, इन्द्रियाँ भी हैं, अंगोपांग भी हैं । परन्तु ये सब विभिन्न दिशाओं में बिखरे हुए हों, एक लक्ष्य में स्थिर न हों तो, इनकी शक्तियों या सत्परिणामों का लाभ नहीं मिल सकता । इन सबका सम्मिलित रूप ही मानव-जीवन है । परन्तु इनका लाभ तभी मिल सकता है, जबकि इन्हें साधा जाय, संभाला जाए, एक ही लक्ष्य में एकाग्र किया जाए तथा इनकी सुव्यवस्था के लिए चेष्टा की जाए। इसी को हम साधना कहते हैं ।
साधना द्वारा तन, मन, वचन, इन्द्रिय आदि को इस प्रकार साधा जा सकता है, जिस प्रकार सर्कस वाले सिंह जैसे आक्रमणकारी हिंस्र जीव को स्वामिभक्त, आज्ञाकारी एवं मालिक के इशारे पर चलने वाले बनाने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं । सर्कस के पशु-शिक्षक उन भयंकर जन्तुओं की अनगढ़ आदतों तथा क्रूर एवं उद्धत स्वभावों को छुड़ाने और अपने मनोनीत सांचे में ढालने तथा उस प्रकार का अभ्यास डालने में कठोर पुरुषार्थ करते हैं ।
आध्यात्मिक साधना का मार्ग कठिन भी, सरल भो
यही बात आत्मिक क्षेत्र में साधना के विषय में कही जा सकती है । आध्यात्मिक साधना का मार्ग कठिन भी है और सरल भी । जिन लोगों की रुचि, श्रद्धा या जिज्ञासा अध्यात्म साधना के प्रति नहीं होती । जो ढर्रे का जीवन जीना चाहते हैं, आत्मा के निजी गुणों -- ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सुख आदि की साधना के लिए अपने तन-मन आदि साधनों को मोड़ना नहीं
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