Book Title: Tamso ma Jyotirgamayo
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 244
________________ हिंसा के स्रोत और उनमें तारतम्य २३१ बन्ध कर लेती है । कई बहनें आलस्यवश तथा दुःख के मारे आटा पीसने का त्याग करके कलचक्की में आटा पिसवाती हैं, वे थोड़ी-सी हिंसा से बच कर कलचक्की से होने वाली महान् हिंसा को न्यौता दे देती हैं। क्योंकि कलचक्की में जो गेहूँ पीसने को दिये जाते हैं, उनमें धन, धर्म (अहिंसा) और स्वास्थ्य-ये तीनों पिस जाते हैं । पैसा तो पिसाई का देना ही पड़ता है । कलचक्की से आटा पिसवाने में जो अन्न दिया जाता है, वह सारा का सारा नहीं तो अधिकांश दूसरे के अनाज के साथ मिल जाता है । कलचक्की में मछुए आदि लोग भी पिसवाने आते हैं, उनकी मछली, मांस आदि को टोकरी या बर्तन में अन्न होता है, वही इसके साथ मिल जाता है। इससे धर्म भ्रष्ट हो जाता है। बैठे-बैठे आलसी होकर उन बहनों का शरीर फूल जाता है, उन्हें लगातार दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं। थोड़ा सा आलस्य न छोड़ने ने कितना बड़ा आरम्भ करना पड़ता है। अतः भविष्य की महा हिंसा को रोकने हेतु वर्तमान की अल्प हिंसा को- वह भी श्रावक के लिए अत्याज्य है, स्थावर जीवों की हिंसा छोड़ना दुष्कर है। इसलिए पुरुषार्थसिद्धयुपाय में बताया गया है-- एकः करोति हिंसा भवति तत्फलभागिनो बहवः । द्वया विदधाति हिंसा, हिंसाफलम् भवत्येकः ॥ रसोई आदि का आरम्भ (हिंसा) एक व्यक्ति करता है किन्तु हिंसा के फलभागी सभी भोजन करने वाले होते हैं। इसी प्रकार कई व्यक्ति जैसे नौकर-चाकर तथा कारखाने आदि में काम करने वाले व्यक्ति हिंसा करते हैं, लेकिन स्वामी को ही उस हिंसा का फल भोगना पड़ता है। ___ इस प्रकार हिंसा और अहिंसा के विविध विकल्पों पर उनमें तारतम्य को भलीभांति समझने का प्रयास करना चाहिए, तभी अहिंसा की साधना भलीभांति हो सकती है, तथा हिंसा-अहिंसा के पालन के सम्बन्ध में जो विविध भ्रान्तियाँ हैं, वे भी दूर की जा सकती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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