Book Title: Tamso ma Jyotirgamayo
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 209
________________ १६६ तमसो मा ज्योतिर्गमय सक्रिय रूप देने के लिए द्रव्यहिंसा यह हुई कि हीरोशिमा और नाकासाकी इन दो शहरों पर अणुबम बरसा कर दोनों शहरों को तहस-नहस कर दिया, लाखों प्राणियों को मौत के घाट उतार दिया । जो बच रहे, वे भी अंगविकल, बीमार, मृत्यु और जीवन के बीच में झूलते रहे । मनुष्य का किया हुआ सारा परिश्रम, सारे जुटाए हुए साधन मिट्टी में मिला दिये । यह ब्रव्यहिंसा के साथ भावहिंसा थी । शास्त्रीय उदाहरण चाहें तो कोणिक सम्राट् का लीजिए । लोभवश हार और हाथी को हल्ल - विहल्लकुमार से हथियाने के लिए कोणिक ने प्रयत्न किया । सत्ता के जोर से धमकी देकर उनसे हार, हाथी माँगा लेकिन हार और हाथी दोनों उन्हें न्यायप्राप्त वस्तुएँ थीं, वे उनके अधिकार की थीं, नहीं दीं और मातामह चेटक महाराजा की शरण में चले गये । नाना चेटकराज ने कोणिक को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन कोणिक उलटा नाना के खिलाफ बोलने लगा । नाना को भी उसने धमकी दे दी कि या तो हल्ल - विहल्लकुमार से हार और हाथी दिला दो, या फिर हम युद्ध करके ले लेंगे । महाराजा चेटक ने हल्ल-विहल्ल का पक्ष न्याययुक्त देखकर वही निर्णय लिया । जिसके फलस्वरूप कोणिक ने युद्ध छेड़ दिया । उस युद्ध में १ करोड़ ८० लाख मनुष्यों का संहार हुआ । यह हुई भावहिंसा के साथ भयंकर द्रव्यहिंसा | अब चौथा विकल्प रहा । वह इस प्रकार है न तो भावहिंसा हो और न ही द्रव्यहिंसा हो । यह चौथा भंग हिंसा की दृष्टि से शून्य है, यानी पूर्ण अहिंसा की स्थिति है । इसमें हिंसा को किसी भी रूप में अवकाश नहीं है । ऐसी स्थिति १४वें गुणस्थानवर्ती अयोगी केवली की होती है, या मुक्ति में होती है । वहाँ न तो हिंसा की वृत्ति है और न ही हिंसा का कृत्य है । अहिंसा का यह सर्वोच्च आदर्श है । हिंसा-अहिंसा कई बार साधारण जन हिंसा के साधनों को लेकर अनुमान लगा लेते हैं कि यह हिंसक है या हिंसा ज्यादा हो रही है । परन्तु जैन सिद्धान्त की दृष्टि से एक बात निश्चित है कि हिंसा चाहे सूक्ष्म' हो या स्थूल, वह १ सूक्ष्मा न खलु हिंसा परवस्तुनिबन्धना भवति पु ंसः । हिंसायतन निवृत्तिः परिणामविशुद्धये Jain Education International तदपि कार्या ।। -- पुरुषार्थ० ४६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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