Book Title: Tamso ma Jyotirgamayo
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 207
________________ १९४ तमसो मा ज्योतिर्गमय केवल श्वेताम्बर परम्परा ही नहीं, दिगम्बर परम्परा में भी समयसार में इसी सिद्धांत का समर्थन मिलता है। जदं तु चरमाणस्स, दयापेहस्स भिक्खुणो। णवं ण बज्झदे कम्मं पोराणं च विधूयदि ॥ जो भिक्षु यतनापूर्वक चल रहा है, जिसके चित्त में प्राणिमात्र के प्रति दया का झरना बह रहा है वह चलता हुआ भी नवीन कर्मों का बंध नहीं करता; इतना ही नहीं, पहले बंधे हुए कर्मों की निर्जरा भी करता है । क्योंकि यतनाशील साधक के हृदय के कण-कण में भाव विशुद्धि होती है । इस कारण बाहर में हिंसा होते हुए भी कर्मन्ध नहीं होता प्रत्युत कर्मनिर्जरा का ही फल होता है। भावहिंसा से शून्य केवल द्रव्यहिंसा को भलीभांति समझने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टान्त लीजिए। ____ एक बहुत प्रसिद्ध चिकित्सक है । वह चीरफाड़ (ऑपरेशन) करने में बहुत माहिर है । दूर-दूर से रोगी आकर उससे चिकित्सा कराते हैं। एक ऐसा रोगी आया जिसके पेट में फोड़ा था। कई वैद्यों, हकीमों और डाक्टरों की दवा ले चुका था, फिर भी रोग ठीक नहीं हआ । आखिर निराश होकर वह इस चिकित्सक की शरण में आता है। चिकित्सक रोग का गहराई से अध्ययन करता है, सारा इतिहास पूछता है, आखिर अपना निर्णय रोगी को सुना देता है कि "इस रोग का ऑपरेशन करना पड़ेगा, ऑपरेशन बड़ा खतरनाक है । भगवान् की कृपा हुई तो उससे तुम्हारा रोग ठीक हो जाएगा।" रोगी ऑपरेशन का खतरा उठाने के लिए तैयार हो जाता है । वह लिखितरूप से भी चिकित्सक को अपनी सम्मति दे देता है । चिकित्सक आपरेशन टेबल पर रोगी को लिटा कर आपरेशन शुरू करता है। चिकित्सक के दयालु हृदय में रोगी के स्वस्थ होने की मंगलकामना है, उसकी जिन्दगी बचाने के लिए प्रयत्न है। बहुत ही सावधानी से ईमानदारी पूर्वक वह शल्य क्रिया करता है। किन्तु ऑपरेशन करते-करते अचानक एक नस कट जाती है, जिससे खून का फव्वारा छूटता है । चिकित्सक करुणा होकर हरसम्भव प्रयत्न करता है, रक्त प्रवाह को रोकने के लिए। लेकिन उसके सभी उपाय विफल हो जाते हैं, रोगी वहीं दम तोड़ देता है। अब बताइए कि उक्त चिकित्सक को क्या फल हुआ? क्या वह हिंसा के पाप का भागी होगा या दयाभाव से प्रेरित होने के कारण पुण्यबन्ध का? स्थूल दृष्टि वाले लोग तो यही कहेंगे-"चिकित्सक के हाथ से बीमार की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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