Book Title: Tamso ma Jyotirgamayo
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 236
________________ हिंसा के स्रोत और उनमें तारतम्य २२३ शक्ति-परीक्षण कर लिया। इस पारस्परिक युद्ध में रावण को पराजय का मुंह देखना पड़ा। विमल रामायणकार ने इस घटना को लिखकर युद्ध के अहिंसात्मक दृष्टिकोण का कुशलतापूर्वक आलेखन किया है। इस कथा प्रसंग से स्पष्ट है कि करवाने की अपेक्षा स्वयं कर लेने में मनुष्य की युद्धजन्य हिंसा प्रवृत्ति भी सीमित की जा सकती है। यदि वे दोनों सेनाओं को लड़ाते तो महारम्भ होता, जबकि लड़ने से अल्पारम्भ की भूमिका हुई। हिटलर की भूमिका भी लड़ाने की थी। उसने स्वयं एक भी लड़ाई नहीं लड़ी, केवल सेनाओं को उकसा-उकसा कर लड़ाया । हिटलर स्वयं नहीं लड़ा या स्वयं ने रक्त की बूंद भी नहीं बहाई, इसलिए क्या महा हिंसा का महापाप उसे नहीं लगा ? जबकि जय-पराजय का फलभोक्ता हिटलर रहा है, लड़ाई की योजना उसी के दिमाग की उपज है। इसलिए कोई भी समझदार व्यक्ति इस तर्क को स्वीकार नहीं करेगा कि हिटलर अहिंसक था, उसे पाप क्यों लगेगा, पाप तो स्वयं लड़ने वालों को लगता है ? कदापि नहीं। बल्कि लड़ाने वाला ही ज्यादा पाप का भागी बना है। अगर दोनों पक्ष के नेता ही परस्पर लड़कर फैसला कर लेते तो हिंसा सीमित होती । लड़ाने में तो विराट हिंसा ही हुई । खाड़ी युद्ध में इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने तथा अमरीका के राष्ट्रपति जाज बुश ने युद्ध में स्वयं भाग नहीं लिया । स्वयं ने अपने हाथ से किसी को नहीं मारा । किन्तु उन्हीं की प्रेरणा से हजारों मानवों और लाखों प्राणियों का संहार हो गया। सारे हिंसा के मूल केन्द्र वे दोनों ही व्यक्ति थे । किन्तु सत्ता की अभिलिप्सा में यह भयकर नरसंहार हुआ। उन्होंने स्वयं अपने हाथ से हिंसा नहीं की किन्तु हिंसा करवाई। यदि सद्दाम हुसैन और जार्ज बुश स्वयं ही परस्पर युद्ध कर लेते तो इतना नरसंहार नहीं होता। तीसरा करण अनुमोदन है। अनुमोदन में व्यक्ति स्वयं नहीं करता, न कराता है, सिर्फ सराहना या समर्थन किया करता है । हिंसा कार्य का अनुमोदक सिर्फ मुफ्त में पाप बटोरता है, हिंसा का पाप व्यर्थ ही मोल ले लेता है। उदाहरण के तौर पर, न्यायालय में जज के सामने एक ऐसा अपराधी आया, जिसके जुर्म को देखते हुए फांसी की सजा हो सकती थी। न्यायाधीश सोचने लगा-मैं चाहता हूँ कि यह बच जाए तो अच्छा, लेकिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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