Book Title: Tamso ma Jyotirgamayo
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 203
________________ १६० तमसो मा ज्योतिर्गमय इसका विश्वास जीत लिया। रात-दिन भाई की तरह वह साथ में रहता, धार्मिक क्रियाएँ करता, बाह्य अहिंसा के पालन में कोई कोर-कसर नहीं रखता था । पर उसकी नीयत खराब थी। वह चाहता था कि किसी तरह इसे खत्म कर दिया जाए तो इसकी पूंजी मेरे हाथ में आए। एक बार वह बीमार पड़ा, इतने असाध्य रोग से ग्रस्त कि बचने की आशा न रही । यह चालाक व्यापारी डॉक्टर से दवा लेकर आया और चुपके से उसमें जहर की पुड़िया घोल कर लाया और इस बीमार व्यापारी को पीने को दी। इसने भगवान् का नाम लेकर वह दवा पी ली। संयोगवश वह पुड़िया, जो उस चालाक व्यापारी ने दवा में मिलाई थी, वह जहर की नहीं थी, वह इसी रोग की कोई पेटेंट दवा थी। इस कारण भाग्यवश बह व्यापारी निरोग हो गया। उसने अपने इस चालाक व्यापारी का बहुत आभार माना । चालाक व्यापारी ने देखा कि यह तो विष देने पर भी मरा नहीं, अतः उसके मन में तो बहुत अफसोस रहा, परन्तु बाहर से बहुत ही चिकनी-चुपड़ी बातें करने लगा। इस कहानी में यद्यपि चालाक व्यापारी नये व्यापारी की किसी प्रकार की हिंसा नहीं कर सका, किन्तु भावों से वह हिंसा कर ही चुका था, हिंसा के लिए ही उसने जहर की पुड़िया समझ कर दवा में घोली थी। यह तो उस बेचारे रोगी व्यापारी का भाग्य था कि वह दवा मारक न होकर स्वास्थ्यकर सिद्ध हुई। स्थूल दृष्टि वाले लोग इस चालाक व्यापारी को भले ही दयालु, परोपकारी या जीवनदाता कहें, परन्तु ज्ञानी पुरुषों की दृष्टि में वह पूरा हिंसक है, उसके मन में हिसा के संकल्प आए, तभी से भाव हिंसा हो गई और पापकर्म का बन्ध हो गया, द्रव्य हिंसा इस घटना में कतई नहीं हुई। मगध की एक प्राचीन कथा है, काल सौकरिक की। सम्राट श्रेणिक को श्रमण भगवान् महावीर ने नरक गति निवारण के लिए चार उपाय बताये थे, उनमें से एक उपाय यह भी था कि राजगृह निवासी काल सौकरिक (कसाई) अगर एक दिन के लिए पशुवध सर्वथा बंद कर दे। सम्राट श्रेणिक ने शेष तीनों उपाय आजमा लिए और उनमें निष्फल हो गए, तब इस चौथे उपाय को आजमाना चाहा। उन्हें विश्वास था कि काल सौकरिक मेरे राज्य का नागरिक है, वह मेरी बात मान कर पशुबध बंद कर देगा । परन्तु काल सौकरिक से कहने पर वह तन गया--"यह तो मेरी मुख्य आजीविका है, न करू तो मैं और परिवार वाले सब भूखे मरेंगे।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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