Book Title: Tamso ma Jyotirgamayo
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 196
________________ हिंसा-अहिंसा की परख १८३ मान लीजिए, एक परिवार का अगुआ है। सारे परिवार का उस पर उत्तरदायित्व है । परिवार में बूढ़े माँ-बाप हैं, भाई-बहन हैं, और अन्य सगे-सम्बन्धी हैं । इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अशक्त हैं, न कमा सकते हैं, न कुछ श्रम कर सकते हैं । ऐसी स्थिति में परिवार के अगुआ के मन में विकल्प उठता है-ये सब लोग मेरी कमाई खा रहे हैं, बेकार पड़े रोटियां तोड़ रहे हैं। काम कुछ करते नहीं, अनाज के दुश्मन बन रहे हैं। बूढ़े माँबाप अब तक क्यों खाट संभाले बैठे हैं, क्यों नहीं भगवान् के घर पहुँच जाते ! बीमार पड़ते हैं, दवा चाहिए, पथ्यपालन के लिए चीजें चाहिए । मैं अकेला कब तक करता रहूँगा ? इस प्रकार की लोभ वृत्ति ने परिवार के मुखिया के मन में जन्म ले लिया। इसका मतलब है-अपने ही सुख-दुःख को वह सुख-दुःख समझता है, परिवार के सुख-दुःख में अपना कोई हिस्सा नहीं समझता। ऐसा मानव अपने में ही बंद होना शुरू हो गया । यहाँ बाहर से किसी की कोई हिंसा नहीं दिखाई दे रही है, लेकिन लोभवृत्ति के विचार के कारण उसने अपनी आत्मा का हनन कर लिया, लोभरूप भाव हिंसा के द्वारा। परिवार में कोई आदमी बीमार है। बीमारी की पीड़ा से छटपटा रहा है । रात भर नींद नहीं आ रही है। उस हालत में यदि किसी के मन में यह विचार आया कि यह बीमार नाहक मुझे क्यों तंग कर रहा है ? मेरी नींद क्यों हराम कर रहा है यह ? ऐसी सूरत में वह बीमार का तो बाह्य दृष्टि से कोई हिताहित नहीं कर सका, मगर स्वार्थवृत्ति के रोग से लिप्त होकर उसने अपनी भाव हिंसा कर ली । अहिंसा के उसने टुकड़े-टुकड़े कर डाले, साथ ही उसने मानवता को भी तिलांजलि दे दी। इसी प्रकार घर में कोई अतिथि आ गया। उसके पेट में अचानक दर्द उठा। दर्द इतना असह्य हो उठा कि वह दर्द के मारे कराहने और चीखने लगा। मान लो, घर का मुखिया उसकी परिचर्या में दो-तीन घंटे लग जाने के बाद उकता कर मन ही मन विद्रोह कर बैठे, झुंझला उठे कि यह बला कहाँ से आ पड़ी? इसे यहीं आकर बीमार होना था ? हमें नाहक हैरान कर दिया। ऐसी स्थिति में बाह्य अहिंसा का भले ही वह घर का मालिक पालन करता हो, 'मित्ती मे सव्वभूएसु' का भले ही उच्चारण करता हो, सामायिके दिन में भले ही . -५ कर लेता हो, किन्तु अन्तर में समभाव नहीं जगा, अन्तर् में अभी विद्रोह रूप में भाव हिंसा करवटें ले रही हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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