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जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय को आधुनिक व्याख्या
(४) त्रि-प्रदेशी स्कन्ध एक अंश (सद्भावपर्यायों) की अपेक्षा से तो अस्तित्ववान् हैं किन्तु एक अंश (असद्भावपर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है, इसलिए त्रि-प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् हैं भी और अस्तित्ववान् नहीं भी हैं।
(५) त्रि-प्रदेशी स्कन्ध एक अंश (सद्धावपर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान हैं और दो अंशों (असद्भावपर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं हैं। अतः त्रि-प्रदेशो स्कन्ध अस्तित्ववान हैं और दो असद्भावपर्यायों की अपेक्षा से नहीं हैं।
(६) त्रि-प्रदेशी स्कन्ध दो अंश (सद्भावपर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान हैं और एक अंश (असद्भावपर्यायों) की अपेक्षा से नहीं है । अतएव त्रि-प्रदेशी स्कन्ध दो सद्भावपर्यायों की अपेक्षा से तो अस्तित्ववान् हैं लेकिन एक असद्भाव पर्यायों की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं हैं। ___ (७) त्रि-प्रदेशी स्कन्ध एक अंश (सद्भावपर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और दूसरे अंश (तदुभय) को अपेक्षा से अवक्तव्य हैं । अतः त्रि-प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान हैं और अवक्तव्य हैं ।
(८) त्रि-प्रदेशी स्कन्ध एक अंश (सद्भावपर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान हैं और दो अंश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य हैं। अतएव त्रि-प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान हैं भी और अवक्तव्य हैं ।
(९) त्रि-प्रदेशो स्कन्ध दो देश (सद्भावपर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्वान् हैं और एक देश (तदुभय पर्यायों) को अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं हैं । इसलिए त्रि-प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान हैं और अबक्तव्य हैं ।
(१०) त्रि-प्रदेशी स्कन्ध एक देश (असद्भावपर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं हैं और दूसरे देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य हैं । अतएव त्रि-प्रदेशो स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं भी हैं और अवक्तव्य हैं।
(११) त्रि-प्रदेशी स्कन्ध एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं हैं और दो देश (तभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतः त्रि-प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं है और अवक्तव्य है।
(१२) त्रि-प्रदेशी स्कन्ध दो देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और एक देश (तदुभय पर्यायों) को अपेक्षा से
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