Book Title: Syadvada aur Saptabhanginay
Author(s): Bhikhariram Yadav
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 222
________________ समकालीन तर्कशास्त्रों के सन्दर्भ में सप्तभंगी : एक मूल्यांकन १७५ के लिए माडल प्राप्त कर उस माडल के आधार पर सप्तभंगी को प्रतीकीकृत करके पूनः उसकी व्याख्या मानक तर्कशास्त्र के आधार पर की गयी है जिसके कारण उसमें अनेक प्रकार का दोष आ गया है। सर्व प्रथम, मानक तर्कशास्त्र पूर्ण रूप से भविष्य कालीन संभाव्य पर निर्भर है जबकि स्याद्वाद नहीं। दूसरे, प्रथम अर्थात् स्यादस्ति भंग एक निश्चयात्मक एवं निर्णीत कथन है । वह जिस अस्तित्व धर्म का विवेचन करता है वह निश्चित रूप से वस्तु में है; क्योंकि उसी अस्तित्व धर्म की अपेक्षा से वस्तु की सत्ता है। इसलिए स्यादस्ति भंग को संभाव्य सत्य नहीं कहा जा सकता है। तीसरे, श्रीमती आशा जैन ने सप्तभंगी के मूल में सिर्फ एक भंग को मानकर उसके निषेध के रूप में स्यान्नास्ति भंग को स्वीकार किया है जो कि जैन विचारणा के विपरीत है। इसका विस्तार से विवेचन हमने पूर्व में किया है। चौथे, उपयुक्त विवेचन में भविष्यकालीन संभाव्य घटना का जो दृष्टान्त लिया गया है वह अवक्तव्य के सन्दर्भ में ठीक नहीं बैठती है; क्योंकि उपर्युक्त दृष्टान्त में जो भविष्य कालीन संभाव्य घटना है वह वास्तव में निर्णीत ही है। केवल उसके बारे में जानकारी का अभाव है। वह भी एक्सरे और श्राव आदि के जाँच के द्वारा प्राप्त की जा सकती है तब वह अनिर्णीत कहाँ है ? वह योगियों के लिए भी ज्ञेय है। वह केवल सामान्य व्यक्तियों के लिए ही अज्ञात है। वह यथार्थ कथन उक्त संभाव्य की वास्तविकता और अवास्तविकता पर विचार करता है जबकि अवक्तव्य के प्रश्न का सम्बन्ध कथन की वास्तविकता और अवास्तविकता से नहीं है अर्थात् अवक्तव्य का सम्बन्ध अस्ति-नास्ति की सत्यता-असत्यता से नहीं है यह उनकी वास्तविक स्थिति को निश्चित नहीं करता है प्रत्युत अस्ति-नास्ति के युगपत्भाव या एक साथ न कह सकने की असमर्थता को अभिव्यक्त करता है। अस्ति-नास्ति के युगपत् भाव वास्तविक है लेकिन उनके कहने की असमर्थता है। जबकि दिये हुए दृष्टान्त में, बालक का श्यामल होना या न होना भी निश्चित है। वास्तव में वह एक ही वर्णवाला है। लेकिन कहने के अर्थ में उसके कहने की असमर्थता का कोई बोध नहीं होता है। इसलिए उपयुक्त प्रतीक ठीक ढंग से नहीं बैठता है । वस्तुतः उपर्युक्त व्याख्या को युक्तिसंगत नहीं कहा जा सकता है। यद्यपि सप्तभंगी के मूल भंगों को छोड़कर शेष सभी भंग सांयोगिक प्रकथन ही हैं। किन्तु उनकी वह सांयोगिता तर्कशास्त्रीय संयोजन (कन्जंक्शन) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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