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समकालीन तर्कशास्त्रों के सन्दर्भ में सप्तभंगी : एक मूल्यांकन १७३ इसके पश्चात् उन्होंने शेष भङ्गों को समुच्चय और विकल्प संयोजक के द्वारा निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया है :
(४) स्यादस्ति च नास्ति = AVOय (५) स्यादस्ति च अवक्तव्यम् - AयV oय (६) स्यान्नास्ति च अवक्तव्यम् = AयV oय (७) स्यादस्ति च नास्ति च अवक्तव्यम् = AयVDEVoय
स्पष्ट है कि उपर्युक्त प्रतीकीकरण में मानक तर्कशास्त्र का व्यवहार किया गया है। मानक तर्कशास्त्र के अनुसार संभाव्यता का प्रतीक है,
आवश्यक सत्य तथा ० यथार्थ सत्य का प्रतीक है।' श्रीमती आशा जैन ने "स्यात्" पद को एक परिवर्तनीय परिमाणक मानकर उसका अनुवाद A, D, और 0, इन तीनों प्रतीकों में किया है। अब इन प्रतीकों से चिह्नित करने पर स्यादस्ति का अर्थ संभाव्य सत्य, स्यान्नास्ति का अर्थ आवश्यक सत्य और स्यादवक्तव्य का अर्थ यथार्थ सत्य होगा। पुनः श्रीमती आशा जैन ने सप्तभङ्गी के मूल में केवल एक ही भंग को माना है। इसलिए उन्होंने अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य इन तीनों को केवल "य" से परिभाषित किया है। मानक तर्कशास्त्र के अनुसार आवश्यक सत्य वह है जो अनिवार्य रूप से सत्य हो । संभाव्य सत्य का अर्थ है कि कथन सत्य भी हो सकता है और असत्य भी हो सकता है। इसी प्रकार यथार्थ सत्य यह अभिव्यक्त करता है कि कथन वास्तव में न तो सत्य है और न तो असत्य है प्रत्युत वह अनिर्णीत है अर्थात् यथार्थ सत्य कथन की अनिर्णेयता को प्रकट करता है।
इस प्रकार इन्हीं अर्थों के आधार पर श्रीमती आशा जैन ने सप्तभंगी के प्रतीकात्मक स्वरूप का आशय निम्नलिखित रूप में प्राप्त किया है___"यदि हम "स्यात् य" को संभाव्य सत्य मानते हैं तो "स्यात् य", "स्यात् न य", "स्यात् यथार्थ य", "स्यात् य अथवा स्यात् न य", "स्यात् य अथवा यथार्थ य", "स्यात् न य अथवा यथार्थ य" और "स्यात् य स्यात् न य स्यात्
1. O P For P is necessary ( necessarily true )
A For P is possible ( Possibly true ) 0 P For P is actual ( actually true) -Nicholas Rescher, Many Valued Logic, p. 189.
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