Book Title: Syadvada aur Saptabhanginay
Author(s): Bhikhariram Yadav
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 267
________________ २२० जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय को आधुनिक व्याख्या नोला + पोला = हरा। पोला + वायलेट = लाल। वायलेट + नीला = बैगनी। इसी प्रकार हरा + बैगनी % काला होगा।' इस प्रकार तीन मूलभूत रंगों के संयोग से चार ही मिश्रित रंग बनते हैं। इन मिश्रित रंगों का अस्तित्व अपने मूल रंगों के अस्तित्व से भिन्न है। इसलिए इन्हें मूल रंगों के नाम से अभिहित नहीं किया जा सकता है। ठीक यही बात स्याद्वाद के सन्दर्भ में भी है। यद्यपि सप्तभंगी के उत्तर के चार भंग पूर्व के तोन मूलभूत भंगों के संयोग मात्र ही हैं। किन्तु,वे सभी उक्त तीनों भंगों से भिन्न हैं। इसलिए उनके अलग-अलग मूल्य हो सकते हैं । अतः सप्तभंगी को सप्तमूल्यात्मक कहना सार्थक हैं । सप्तभंगी के सातों भंग सात प्रकार के मूल्य प्रदान करते हैं इस प्रकार के विचार आधुनिक तर्कविदों में भी स्वीकृत है। ऐसे विचार विशेष रूप से सांख्यिकी और भौतिक विज्ञानों में प्राप्त होते हैं। प्रो० जी० बी० बर्च ने अपने लेख "Seven-valued Logic in Jain Philosophy" में ऐसे अनेक विचारकों के मन्तव्य को उद्धत किया है, जिन्होंने सांख्यिकीय या भौतिकीय सिद्धान्तों के आधार पर सप्तभंगी को सप्त मूल्यात्मक सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। भारतीय सांख्यिकी संस्थान के सचिव प्रो० पी० सी० महलनबिस ने स्याद्वाद की एक संभाव्यात्मक व्याख्या करते हुए कहा है कि स्याद्वाद संभाव्यता का गुणात्मक विचार के लिए एक बौद्धिक आधार प्रदान करता है जो कि सांख्यिकी के गुणात्मक या मात्रात्मक विज्ञान का आधार है। यद्यपि उन्होंने "स्यात्" को "हो सकता है" ( May be ) में और "स्यादस्ति अवक्तव्यम् च" को "यह अवक्तव्य है" और स्यान्नास्ति च अवक्तव्यम्" को "यह अवक्तव्य नहीं है" के रूप में . Additive colour mixture takes place when lights are mixed or when sectors of colours are mixed by rotation on a colour wheel. If red, green and blue are so mixed the red and green combine to produce yellow and the yellow and blue combine to yield a neutral gray. Mixture of any two of the three colours produces and complements the third. -Erest R. Hilgard, Introduction to Psychology, p. 344. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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