Book Title: Swarup Deshna Vimarsh
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti

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Page 185
________________ के ज्ञानियो, आज धन्य हैं हम लोग जो श्रमणाचार्य विशुद्ध सागर जी के रूप में पूर्व जन्मों के संचित अपार पुण्य वर्गणाओं से संयुक्त,शारीरिक शुभ लक्षणों से संयुक्त अद्भुत ज्ञान क्षयोपशम वाले विशिष्ट प्रज्ञावान वात्सल्य करूणा मूर्ति, निःकषाय, निर्मल विमल परिणामों से युक्त सतत् दर्शन विशुद्धि आदि षोडश कारण भावनाओं के चिंतन में लीन स्वपर उपकारी उत्कृष्ट श्रमणचर्या के शिरोमणि श्रमण हमको उपलब्ध हुए हैं। इसके लिए हम आचार्य प्रवर, गणाचार्य 108 श्री विराग सागर जी के ऋणी हैं, जिन्होंने हमें ऐसे महान् रत्न श्रमणाचार्य विशुद्ध सागर जी को समाज उद्धार के लिए प्रदान किया है। - पूज्य श्री का प्रत्येक प्रवचन अपने आप में उस दिन का एक मौलिक ग्रन्थ होता है। वह जिनवाणी के सूत्र का विवेचन व भावों की विशुद्धि एवं कषायों का उपशमन करने वाला होता है। आचार्य श्री के अन्तरंग से निकले प्रत्येक शब्द अपने आप में आगम की विशेष व्याख्या करते हुए गूढ़ रहस्य खोलते हैं। यहाँ प्रस्तुत है ” स्वरूप सम्बोधन ग्रन्थ में आचार्य श्री द्वारा दी गयी देशना के अन्तर्गत कषायों एवं परिणाम विशुद्धि के संदर्भ में कुछ अंश”, जिनको आज हमारे जैन जगत के विद्वान अपने प्रवचन का विषय बना लें तो निश्चित रूप से हमको भगवान महावीर के काल की अनुभूति प्राप्त होगी और नहीं लगेगा कि हम आज तीर्थंकर शासन से दूर हैं। नीचे उद्धृत किये जा रहे इन अंशों को यदि हम स्वयं व अपने परिवार में, समाज में, राष्ट्र में, विश्व में यदि अपना लें तो पूरे जगत में राम राज्य की स्थापना होने में कोई देर न लगेगी। सभी जगत् “नमोऽस्तु जिनशासन जयवंत” को आत्मसात करते हुए उसकी शीतल छाया का आस्वादन कर मोक्षमार्गी बन सकेगा। आचार्य श्री के चिंतन में कषायों की मंदता व भावों की विशुद्धि के लिए द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, शुद्धि भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उदाहरणार्थ- जहाँ जिनमन्दिर हों, चैत्य विराजमान हों, गुरु हों और सिद्धान्त का घोष हो रहा हो, यतियों का समूह हो, ऐसे प्रदेश पर अंतिम श्वास निकल जाए तो इससे उत्कृष्ट कोई स्थान नहीं होगा। भूमि प्रदेश का भी नियोग होता है, यथार्थ मानना। आचार्य श्री आगम परम्परा व जिन सिद्धान्तों, सर्वज्ञ प्रणीत जिनशासन के प्रति अत्यन्त समर्पित हैं और उनका मानना है कि सर्वस्व लुट जाये, किन्तु हमारी देवशास्त्र गुरु के प्रति आस्था और विश्वास में न्यूनता नहीं आनी चाहिए । उदाहरणार्थ"ध्यान रखना, कपड़े में छेद हो जाए तो कोई विकल्प मत करना, शरीर में छेद हो जाए कोई टेन्शन नहीं लेना, परन्तु श्रद्धा में छेद न होने पाए, विश्वास में छेद नहीं स्वरूप देशना विमर्श -(169) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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