Book Title: Swarup Deshna Vimarsh
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti

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Page 247
________________ 47. पुण्य-पापात्मन् जीव के गर्भागम से लक्षण - जिस जीव (माँ) को स्वप्न में निर्ग्रन्थ दिखाई देते हैं समझ लें गर्भ में पुण्यात्मन जीव है। माताओं को अच्छी भावनायें अच्छे दोह लें / इच्छायें होती हैं तथा पापात्मन के गर्भ में आने पर मिट्टी, खटाई, मिर्ची आदि मांगती है। प्रथमानुयोग श्रेणिक चरित्रानुसार अभय कुमार जैसा पुण्य जीव गर्भ में आने पर समस्त कैदीगणों को मुक्त कराने का दयालुता का भाव आता है और कुणिक जैसा पापात्मन् गर्भ में आने पर अपने पति का भी रक्त पीने का क्रूर भाव आता है। ये पुण्य-पापात्मन के आगमन की सूचना है | ( पृ० 268) 48. धर्म प्रभावना - ढोल धमाके से नहीं धर्माचरण / सम्यक्त्वाचरण से करें - पंचपरमेष्ठी को खोकर चक्रवर्ती पद इष्ट नहीं है। पुद्गल / भौतिक कणों के पीछे धर्माचरण मत छोड़ना, जिनशासन की प्रभावना, ढोल-धमाके मात्र से नहीं, सम्यक्त्व आचरण से होगी, जेब में कंघी रखकर चलने से नहीं, पानी का छन्ना रखकर चलें । पानी छानकर पियेगा तो देखने वाला तुम्हारे आचरण से जैनत्व की पहिचान कर लेगा । पृ० 269 49. जैनागम के 5 विध अर्थ समझें चार्वाक वृत्ति छोड़े - जैनागम में वस्तु स्वरूप को समझने हेतु 5 विध अर्थ होते हैं नयार्थ, मतार्थ, शब्दार्थ, आगमार्थ एवं भावार्थ । आज लोगों में केवल खाओ - पियो - मौज करो जैसी चार्वाक मतीय प्रवृत्तियाँ पनप रही हैं। वे स्वर्ग-नरक को कल्पना मात्र मानकर केवल वर्तमान के आनंद कोही भोगने की बात करते हैं अतः मिथ्यात्वरूप परिणतियाँ छोड़ जैन दर्शन की ओर आवें । पृ० 270-71 50. ज्ञानी बनें - गुरु को समर्पण करें तर्क नहीं आज्ञा स्वीकारें - जिनागम में पहला आज्ञा - सम्यक्त्व है, परीक्षा सम्यक्त्व नहीं, क्यों करना नहीं- हाँ करना सीखें . क्योंकि - क्यों में तर्क / उत्तेजना/अहंकार / अज्ञानता है जबकि 'हाँ' में समर्पण / वात्सल्य - प्रीति विद्यमान है । व्याकरणानुसार ज्ञानी को 'ज्ञ' अक्षर स्वतन्त्र - नहीं संयुक्ताक्षर है। "ज्योर्झ" ज् व्यञ्जन, हलन्त ञ् व्यञ्जन हलन्त इन 2 वर्णों से 'ज्ञ' बना है । अतः गुरु चरणों में बैठकर अहंकार की सत्ता छोड़ दें ज्ञानी बन जायेगा। जैन दर्शन में पुण्य ही वरदान एवं पाप ही श्राप है । इसलिए धर्म की शरण स्वीकारें । पृ० 275-76 51. कर्म सिद्धान्त/समय बलवान है - आचार्य भरतसागर व मुनि क्षमा सागर जी प्रसंग - आचार्य श्री भरत सागर जी व मुनिश्री क्षमासागर जी के प्रति कर्मों ने कैसी निष्ठुरता दिखलाई है । पथरिया में आचार्य विद्यासागर जी व आचार्य 231 स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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