Book Title: Swarup Deshna Vimarsh
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti

View full book text
Previous | Next

Page 261
________________ 45. खानापेक्षया योगी – भोगी में अन्तर 46. योगत्रय की शुद्धि करें। 47.पुण्य-पापात्मन जीव के गर्भागम से लक्षण 48. धर्मप्रभावना-धर्माचरण –सम्यक्त्वाचरण से करें 49. जैनागम के 5 विध अर्थ/चार्वाक वृत्ति छोड़े 50. ज्ञानी बन गुरू को समर्पण करें न कि तर्क-वितर्क 51. कर्म सिद्धान्त / समय बलवान है। 52. श्री, श्रीमान, श्रीमती एवं श्रीमति वालों का माहात्म्य 53. जिनशासन के वचन परमौषधि- जिनभारती गौ का अमृतपय 54. कर्म के पर्यायवाची 55. मंत्र और तंत्र का माहात्म्य 56. हम विद्याजीवी बनें न कि श्रुतजीवी 57. श्री बाहुबली मस्तकाभिषेक-श्रमण संस्कृति का सम्मिलन 58. भट्टारकों द्वारा श्रुतसंरक्षण – श्लाघनीय कार्य 59. श्रुत क्या, श्रुतधारियों का स्मरण, 'श्री' सदुपयोग प्रेरणा 60. धर्मध्वंस काल में मौन नहीं, मुखर हों 61. समसामायिक शंका समाधान 62. सापेक्षतया गजरथ से ज्ञानरथ बेहतर है। 63. सोदाहरण व्रत पालनार्थ प्रेरणा 64. वस्तु व्यवस्था में ज्ञातादृष्टापना नहीं कर्तापना हानिकर है 65. पुण्यात्मन संयम पथिक परिवार धन्यभाग 66. संस्कृति के संस्कार एवं जिनवाणी का अमृतपान 67. गीत-भजनों में भी सैद्धांतिक कथन हो। द्रव्यचतुष्टय का प्रभाव 68. जैन संस्कृति में बिहार परम्परा क्यों? 69. पूर्वाचार्यों का पुण्यस्मरण – परनिंदात्याग की प्रेरणा 70. पुण्य-पाप परिणमन और प्रतिफल 71. शुभाशुभ कर्म के चार साक्षी 72. आत्मकल्याण सर्वोपरि अन्य नहीं 73. पुण्यक्षीणता अनर्थकारी स्वरूप देशना विमर्श 245 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 259 260 261 262 263 264