Book Title: Swarup Deshna Vimarsh
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti

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Page 262
________________ 74. प्रवचन सभा- नाट्यसभा का अन्तर, निमित्तातीत बनें 75. पराधीनता - स्वाधीनता पहिचानें 76. ध्रुव मिथ्यात्व एवं व्यवहार धर्म में अन्तर 77. साधु श्रावक षडावश्यकों का पालन कर्तव्यपूर्वक करें। 78. आत्म कल्याण के 2 ही काल 79. गर्भपात का निषेध सूतक-पातक व्यवस्था का प्रतिषेध 80. गुरुपास्ति /साधु सेवा की प्रेरणा 81. स्वरूप सम्बोधन की रटना नहीं घट में घटना घटायें 82. साधु कौन 83. अराध्य की अराधना पुजारी बनकर करें भिखारी बनकर नहीं 84.साधु के नाम के साथ 'सागर' विशेषण क्यों? 85..द्रव्य भाव तीर्थ श्रमण संस्कृति के संरक्षण की प्रेरणा . . .. 86. तीर्थों के भेद व मोक्षमार्ग की एक्यता 87. वात्सल्य गुण से ही धर्म आत्म प्रभावना 88. श्रमण संस्कृति के संरक्षण की प्रबल प्रेरणा 89. विधि का विधान, विधि होने पर विधियां मिलती हैं 90. निषधिका वंदना से लाभ 91. समाधि समाधिमरण में अन्तर . 92. चातुर्मास माहात्म्य 93. श्रमणत्व सदैव पूज्य है। 94. वैभव से वे-भव होना सार्थक है। 95. सत्पात्रों को / अतिथियों को दान की प्रेरणा ******* 246 स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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