Book Title: Swarup Deshna Vimarsh
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti

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Page 240
________________ 13. दान कैसे देना - कभी ऋण लेकर दान मत देना, शक्ति से अधिक दान मत देना, अन्यथा संक्लेशता हो जायेगी। इच्छाओं को कम करते हुए अपनी द्रव्य में से दान दो। अपनी शक्ति सामर्थ्यनुसार दान दें। श्रीवट्टकेरस्वामी ॥ स्वरूपदेशना पृ० 105 मूलाचार 14. ज्ञान की परिभाषा - 'जेणतच्च बिबुज्झेज्ज, जेणचित्तंणिरुज्झदि । जेण अत्ता विसुज्झेज्ज, तं गाणं जिणसासणे || 267 || मूलाचार - जिससे तत्त्व का बोध हो, चित्र का निरोध हो, आत्मा का शोध हो, उसे जिन शासन में ज्ञान कहा है। भेद से अभेद की ओर ले जाये, खण्ड से अखण्ड की ओर ले जाये, वह सम्यग्ज्ञान है। ज्ञान जोड़ता है तोड़ता नहीं, ज्ञान से ध्यान और ध्यान से निर्वाण होता है । पृ० 116 15. भारत भूमि यंत्रों की नहीं, मंत्रों की / निर्ग्रन्थों की प्रचारक है कम्प्यूटरों से मस्तिष्क नहीं बना, मस्तिष्क ने कम्प्यूटर बनाया है। भारत भूमि यंत्रों की नहीं निर्ग्रन्थों की, मंत्रों की प्रचारक है। मूल तंत्रकर्ता सर्वज्ञ देव, उत्तरतंत्र कर्ता गणधर देव और प्रत्युत्तर तंत्रकर्ता आचार्य परमेष्ठी है। तंत्र अर्थात् अरिहंतों की वाणी, अरिहंत के तंत्र में नकुल और सर्प एक साथ बैठ जायें, सिंह-गाय एक साथ बैठ जावे, अनेक-अनेक परिणामों को एक कर दे यह वीतराग वाणी का तंत्र है, जैनागम में ग्रंथ को भी तंत्र कहा है। समाधि तंत्र बिना प्रमाण के नहीं बोलता ॥ पृ० 117 16. रोटी-योगी और पूड़ी - भोगी में अन्तर - रोटी योगी और पूड़ी भोगी है । पूड़ी दर्पण पर फेरने से वह धुंधला होकर चेहरा नहीं दिखा सकता और रोटी योगी की प्रवृत्ति अर्थात् फेरने से चेहरा दिखेगा । भोग स्निग्धपना है भोगी को ध्रुवात्मा दिखाई नहीं देती, रोटी कभी पेट खराब नहीं करती जबकि पूड़ी चार दिन में ही पेट खराब कर देगी। इसलिए भोगी नहीं योगी बनो ॥ पृ० 119 || - 17. साधु / असाधु की परिभाषा - जीवन्त जीवन जिये वह साधु है और जो जीते जी मरे उसका नाम असाधु है। कुछ लोग जन्म लेकर मर जाते हैं और कुछ मर कर भी अमर हो जाते हैं। " धण्णा ते भयवंता " ॥ पृ० 131 224 18. वृद्धों का माहात्म्य- (श्री ज्ञानार्णव ग्रन्थानुसार) वृद्धों के साथ रहने से अनुभव मिलता, साधना बढ़ती है। इनका अपमान नहीं करना, सेवा करना, पके बाल वालों से पकी सामग्री मांग लेना, सच्चा साधु आचार्यों से स्पर्धा करेगा नहीं, वंदना करेगा। अपने से बड़े परमेष्ठी की वंदना करने से कोटि-कोटि कर्म क्षय • स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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