Book Title: Swarup Deshna Vimarsh
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti

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Page 208
________________ . भी कोई निर्णय नहीं हो पा रहा था। अकलंक स्वामी ध्यानस्थ होकर चिन्तवन करने लगे, बात क्या है? जिन शासन देवी ने कहा हे निर्ग्रन्थ योगी! जिससे तुम शास्त्रार्थ कर रहे हो, वह कोई मनुष्य नहीं है, देवी है। ऐसा? हाँ! क्या करूँ? देव एक बार बोलता है, दुबारा वही नहीं बोलता। अगले दिन शास्त्रार्थ फिर प्रारम्भ हुआ।दुबारा प्रश्न करने पर देवी भाग गयी और निर्णय हो गया। - आचार्य श्री कह रहे हैं कि हर मन्दिरों में और 10-12 लोगों के बीच एक देवता आ गये, क्योंकि पंचमकाल में भगवान् बनने और देवता लाने में कोई देर नहीं लगती। लेकिन ये झूठे देवता होते हैं। प्रश्न करना, उत्तर. दे. तो पुनः प्रश्न करना। पुनः वही उत्तर दे तो समझ लेना झूठा आदमी यही है। लोग तत्त्व से इतने भ्रमित हो चुके हैं, देवी देवता के नाम पर जादू-टोने के नाम पर तीर्थंकर के शासन की शक्ति । भी महसूस नहीं हो रही। विघ्नौघा प्रलयं यान्ति, शाकिनी भूत पन्नगा। विषं निर्विषतां याति, स्तूयमाने जिनेश्वरे॥ मंदिर में पूजा करेंगे और वहाँ जाकर चबूतरे पर न जाने क्या करेंगे। ज्ञानियो यह जिनशासन, नमोऽस्तु शासन भूतों का शासन नहीं भूतनाथ का शासन है। उन्हीं को नमोऽस्तु करो । ऐसे ही सच्ची जिनवाणी जिनको मिल जाऐ उसको शक्ति का संचार होता है, जो कभी नहीं होता। नमोऽस्तु शासन के प्रति श्रद्धा लाओ। यह स्वरूप संबोधन ग्रन्थ वास्तव में चारों अनुयोगों की कुंजी है। इस ग्रन्थ को बार-बार पढ़ने पर भी मन नहीं भरता। हमारे अनादिकाल के अविद्या संस्कार पर तीव्र चोट लगती है। सोचते हैं कि क्या हमारी आत्मा भी सचिंतन मनन एवं आचरण करके परमात्मा बन सकती है। नमोऽस्तु शासन, जिन शासन का ही पर्यायवाची शब्द दृष्टव्य है (पृ० 399) निर्दोष श्री जिनवीर चन्द्र शासन, सर्वज्ञ शासन, जिनेन्द्र शासन, निकलंक शासन, अकलंक शासन, स्याद्वाद शासन, अनेकान्त शासन, अरहन्त शासन, जिनशासन, नमोऽस्तु शासन, पूत शासन, सिद्धशासन, सत्य शासन, अमित शासन, वीतराग शासन, क्षेमकृत शासन, पुण्य शासन, व्यक्त शासन। मूलाचार की संस्कृत टीका में आचार्य वसुनन्दी महाराज ने जिनेन्द्र के शासन को नमोऽस्तु शासन कहा (टीका- 151वी गाथा)। जब हम अंधकार से प्रकाश में आते हैं तब कुछ समय तक आँखें चौंधिया जाती हैं। शायद वे आँखें प्रकाश को अस्वीकार करती हैं, किन्तु कुछ ही समय बाद प्रकाश में इष्ट के दर्शन कर एक टक 192 -स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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