Book Title: Swarup Deshna Vimarsh
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti

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Page 224
________________ . 3. मंगलकरणीय- भव्यजन मंगल करने योग्य हैं। . ___4. मंगल उपाय- रत्नत्रय की साधक सामग्री। 5. मंगल भेद-सभी प्रकार के उपलिखित भेद | 6. मंगल फल- अभ्युदय और मोक्ष सुख मंगल का फल है। . इस प्रकार जहाँ जिनेन्द्रगुण स्तवन मुख्य मंगल है वहीं सिद्धार्थ (सरसों), पूर्णकुंभ, वंदनमाला, श्वेतछत्र, आदर्शदर्पण, नाथ, स्वामी, केन्या, अश्व एवं हस्ति गौण मंगल हैं। इस प्रकार यह सब मांगलिक हैं, मंगल आचरण क्रिया में सहयोगी है जिनसे पाषाण प्रतिमा भी परमात्म सत्ता को प्राप्तकर मंगलमय हो जाती है। मंगल मूर्ति परम पद पंच धरों नित ध्यान। हरो अमंगल विश्व का मंगलमय भगवान॥" मंगल सरस्वती मात का मंगल जिनवरधर्म। मंगलमय मंगल करो हरो असाता कर्म॥2 मंगल में अमंगल इन आदर्श मंगलों का जीवन में सदुपयोग कौन किस तरह करेगा? कैसे जीवन में उतारेगा? पारायण करके परिणाम विशुद्ध बनायेगा, संयमित जीवन का मंगलाचरण करेगा, यह उसकी स्थिति, क्षमता, ज्ञान, विवेक, निमित्त, पुरुषार्थ एवं भाग्य पर निर्भर करता है। आज ऐसे भी दुर्भागी हैं, जो मंगलमय आचरण वाल संतों, माँ जिनवाणी एवं आराध्यों का सत्संग प्राप्त करके भी स्वयं का अमंगल कर रहे हैं, क्योंकि उनकी सोच, चिंतन एवं दृष्टि अमंगल रूप ही है। वह उस जौंक के समान हैं जो दुग्धामृत के स्तन को पाकर भी मिष्ठ दुग्धामृत का पान न करके उसके दुर्गंधित एवं विकृत रक्त को चूसते हैं। अन्य की मंगलकीर्ति, यश एवं प्रभाव से ईर्ष्याभाव करके स्वयं अमंगल की धधकती अग्नि में दग्ध हो जीवन को पतन के असाता रूप गर्त में ढकेल रहे हैं। कुछ भक्त साधु मंगल महाराज को दूर से ही नमस्कार करके पुण्यार्जन कर लेते हैं क्योंकि महाराज स्वाध्याय-लेखन में लीन हैं, मेरे कारण उन्हें किसी प्रकार 208 -स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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