Book Title: Swarup Deshna Vimarsh
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti

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Page 220
________________ जिनशासन में मंगलाचरण की अनिवार्यता, मंगल आचरण का सूत्रपात, मंगल क्या, क्यों, कैसे एवं कौन तथा मंगल आचरण किसका, क्यों, कैसे पर विचार करेंगे? मंगलाचरण की अनिवार्यता जिनशासन के अनुसार किसी भी पुनीत, शुभ कार्य का शुभारम्भ मंगलाचरण साथ ही किया जाता है। इसके चार प्रयोजन कहे हैं नास्तिकत्वपरिहारः शिष्टाचारप्रपालनम्। पुण्यातास्तिश्च निर्विघ्नं शास्त्रादावाप्त संस्तवात्। चार हेतु मंगलकरण, नास्तिकता परिहार | विघन हरन गुण चिंतवन, पालन शिष्टाचार ॥ • आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज भी स्वरूप संबोधन परिशीलन में कहते हैं अहो! सिद्धान्तशास्त्रों की उद्घोषिका वीतराग वाणी ! मैंने आपसे ही सीखा है कि आराधना करने वाले की नास्तिकता का परिहार होता है और उसके द्वारा शिष्टाचार का परिपालन, पुण्य का लाभ निर्विघ्न कार्य की समाप्ति एवं श्रेयोमार्ग की प्राप्ति भी होती है।' प्रत्येक मंगल कार्य करने से पूर्व मंगलाचरण अनिवार्य रूप से करना चाहिए, बिना मंगलाचरण किए किसी भी कार्य को प्रारम्भ नहीं करना चाहिए। मंगलाचरण करने से विद्या एवं विद्याफल की प्राप्ति होती है। शिष्य शीघ्र श्रुतपारगामी होते हैं, यह आगम वचन है पढमे मंगलकरणे सिस्सा सत्थस्स पारगा होंति । 8 मज्झिम्मे णीविग्धं विज्जा विज्जाफलं चरिमे ॥ शास्त्र के आदि में मंगल पढ़ने से शिष्यजन शास्त्र के पारगामी होते हैं, मध्य में मल करने पर निर्विघ्न विद्या की प्राप्ति होती है और अंत में मंगल करने पर विद्या का फल प्राप्त होता है । 1 पुणं वित्ता पत्थ- सिव-भद्द खेमकल्लाणा । सुह- सोक्खादी सव्वे णिदिट्ठा मंगलस्स पज्जाया॥ Jain Education International पुण्य पूत, पवित्र, प्रशस्त, शिव, भद्र, क्षेम, कल्याण, शुभ और सौख्य इत्यादि सब मंगल के ही पर्यायवाची शब्द हैं। 204 9 For Personal & Private Use Only -स्वरूप देशना विमर्श www.jainelibrary.org

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