Book Title: Surajprakas Part 02
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 348
________________ सूरजप्रकास [ ३२३ खळ मेवास' धड़क सह' खासी । एक हुकम सारी धर आसी । वणसी अमल चकरवरतीरौ । तदि आवसी कि' पर धरत्रीरौ ॥ ४६६ थाटनाथ होसी दहं थाटां । झळहळ भड़ां परख खग झाटां । असपति सुणे करेसी आणंद । मुनसप पटा मेलसी' 'महमँद' ।। ४६७ पह सांभर लगि' सांमँद'' पाजा ।। रहसी दास होय अनि राजा । । कूळ पैंतीस सेव स्रब.२ करसी । भूपति रैत जेम दंड भरसो ।। ४६८ महि हम तम खमसी प्रतिमांमां' । सौ सौ गजहूं करसि सलांमां । सिलह ससत्र करि वीर समोजा । जुध वैगौ५५ कीजे ६ महाराजा' ॥ ४६६ १ ग. मैवास। २ ख. ग. सौहौ। ३ ख. ग. को। ४ ख. ग. ५। ५ ख. ग. धरती। ६ ख. असपती। ७ ख. ग. मेल्हसी। ८ ख. ग. पौहो। ६ ख. ग. संभरि । १० ख. ग. लग। ११ ग. सांमद। १२ ख. सव । ग. सब। १३ ग. अतमानां । १४ ख. ग. सस्त्र। १५ ख. वैगो । ग. वेगो। १६ ख. ग. कीजै। १७ ख. माहाराजा । ४६६. मेवास - डाकुओं या लुटेरोंके सुरक्षित रहने के स्थान । धड़क - भय, आतंक । अमल - अधिकार । चकरवरती- चक्रवर्ती। पर - शत्रु, अन्य, दूसरा। धरत्री धरती। ४६७. थाटनाथ - सेनापति । परख - परीक्षा। प्रसपति - बादशाह । मुनसप - मनसब । पटा-जागीरकी सनद । ४६८. लगि - तक । समिद - समुद्र । पाजा- सीमा, हद । ४६६. महि - पृथ्वी। हम तम - हम और तुम, राजस्थानमें प्रचलित अनादर-सूचक प्रयोग । खमसी - सहन करेंगे। प्रतिमांमा - ( ? )। बैंगो- शीघ्र। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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