Book Title: Surajprakas Part 02
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 463
________________ [ 12 ] अधिक सामग्री उक्त वार्ता-साहित्य में प्राप्य है। तत्कालीन आचार-विचार, रहन-सहन, धार्मिक भावनाओं और अंध विश्वासों आदि की ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त करने के लिये इस प्रकार के गद्य साहित्य का गहरा अध्ययन सर्वथा अनिवार्य हो जाता है ।......पाद-टिप्पणियों में दिये गये पाठान्तरों और साथ ही आवश्यक शब्दार्थों से इस संस्करण का विशेष महत्त्व हो गया है। इन दोनों भागों में दी गई भूमिकायें भी उपयोगी और विचार-प्रेरक हैं। ता० २६ जून, १९६१ ८-स्व० पुरोहित हरिनारायणजी विद्याभूषण-ग्रंथसंग्रह-सूची–सम्पादक श्रीगोपालनारायण बहुरा, एम.ए. और श्रीलक्ष्मीनारायण गोस्वामी दीक्षित । स्वर्गीय पुरोहित हरिनारायणजी स्वयं ही एक सजीव संस्था थे। उन्होंने एकाकी जो काम किया, वह अनेकानेक सस्थाओं के मिल कर काम करने पर भी उतनी पूर्णता और तत्परता से किया जाना कठिन ही होता। अत: उनके निजी पुस्तकालय के राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान को सौंपे जाने से वस्तुतः एक बड़ी सांस्कृतिक निधि की सुरक्षा हो गई है, जिसके लिये राजस्थान ही नहीं भारत का समूचा शिक्षित समाज पुरोहितजी के सुपुत्र श्रीरामगोपालजी का सदैव अनुगृहीत रहेगा । अतः ऐसे महत्त्व के पुस्तक-संग्रह की यह पुस्तक-सूची अवश्य ही विद्वानों, संशोधकों आदि सब ही के लिये बहुत ही उपयोगी होने वाली है। प्रतिष्ठान का यह प्रकाशन संग्रहणीय है। ता० २६ जून, १९६१ 8-सूरजप्रकाश भाग १-- कविया करणीदानजीकृत, सम्पादक श्रीसीताराम लालस। - साहित्य-प्रेमियों के साथ ही इतिहासकारों के लिये कविया करणीदानकृत "सूरजप्रकास" का विशेष महत्त्व है । मारवाड़ के इतिहास के प्रमुख आधारग्रंथ के रूप में इस ग्रंथ का अध्ययन किया जाता है। अत: उसको प्रकाशित करने का आयोजन कर प्रतिष्ठान ने एक बड़ो कमी को पूरा किया है। ता० २६ जून, १९६१ महाराजकुमार डॉ० रघुबीरसिंह . एम.ए., एल.एल. बी., डी. लिट्., एम.पी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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