Book Title: Surajprakas Part 02
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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सूरजप्रकास
[ ३६१ काळायण कठठे काळ - कीठ' । दुति सिखर' भमर गजराज दीठ ॥ ५८३ उडि गरद धोम चढ़ि आसमांण । भमरंग दिसा दीसै न भांण ।
सेनारौ घण-घटासू रूपक बांधणौ पखरैतां कांठल भमर पाज । गाजत गयँद नौबत्ति गाज ।। ५८४ हैमरां दादुरां कळळ होय । जगि तोडां दमँग खिदौत जोय । जसवळांतणां'• हाका-स जोर । मिळि'' सबद जांणि' चात्रग्ग' मोर ।। ५८५ वादळां सिलह पोसां वणाव' । साबळां१५ भळक वोजळ सिळोव । . नीसांण धनँख फरहर अनंत । दुरदां हरौळ बक'६ पंत दंत ॥ ५८६
१ ग. कालकोट । २ ग. भमर सिषर गजराज''। ३ ख. ग. निसा। ४ ग. दोसे। ५ ग. काठल। ६ ग. गाजंति। ७ ख. नौवति । ग. नौवत्ति । ८ ल. दमंगि। ६ ख. ग. षिदोत। १० ग. जसबळांतणा। ११ ग. मित्रि । १२ ग. जांण । १३ ख. चात्रग । ग. चात्रक। १४ ख. वणाय । १५ ख. सावलां। १६ ख. ग. वुक ।
५८३. काळायण - श्याम घन-घटा। काळ-कोठ - अत्यन्त श्याम । ५८४. धोम - धुंपा। भमरंग दिसा - दिशाएँ धूलि आच्छादित हो गई है। पखरतां
कवचधारी घोड़ों या योद्धानों। ५८५. हैमरा - घोड़ा। दादुरां- मेंढकों। कळळ - ध्वनि । तोडां- पलीतों। खिदौत -
खद्योत, जुगनू । जोय - देख । जसवळांतणा- यशगायकोंके । हाका-स-आवाज ।
चावग्ग - चातक। ५८६. सिलह पोसां - कवचधारियों । भळक - चमक, द्युति । वीजळ - बिजली या तलवार ।
सिळाव - बिजलीकी चमक । नीसांण -झंडा। धनख - इन्द्रधनुष । दुरवा - द्विरदों, हाथियों। हरोळ - प्रगाड़ी। बक - बक-पक्षी । पंत -पंक्ति ।
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