Book Title: Surajprakas Part 02
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 411
________________ ॥ श्री॥ परिशिष्ट २ संगीत एवं नृत्य संबंधी शब्द तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के वाद्यों को नामानुक्रमणिका अरबी ३५१ जंत्र १५१, १८६ अलगौजूं १८६ झंझर १८६ प्रलाप १५१, १८८, १८६ झणणणण प्रस्ट ताळ १८६ झालरा ८८ उघट १५१, १५२ झालरि २ उरप १५२ . झिमझिम १५२ कलियांग १५३ टिकोर १८६ क्रुकु थुग शुंग रत १५२ टांमक २२१ खंजरी १५२, ३५१ डंको ३५६ खंभायच २५६ डका ३५० खडज १८६ डफ ३५१ गंधार १८६ डाक ३८, २५७, ३६२ गजर १०१, २३० डाको ६२ गाइण १५० ढोल ३५० गायरणी ६० तंबूर १५१, १५२, १८९ गुणीजण तबल ४, ३५, ३७, ६२, १००, १०८, प्रांम १८८ ११०, २५६, २५७, २६७. ३५० घंट २, १३६ तबल्ल ११६, ३६० घडाळ १६९ तबल्लू २२१ घूघर १५० *तान १५१ चंग १५२ *तान संगीत शास्त्र में मूर्छनाओं के आधार पर चौरासी ताने मानी गई है। उनमें उनचास षाडव और पैंतीस प्रोडुव हैं । (शुद्ध मूच्छंनाओं की संख्या सात होने के कारण) षड्ज ग्राम में षाडव मूर्च्छनाओं का लक्षण सात प्रकार का है । यथा-षड्ज ग्राम में षड्ज, ऋषभ, पञ्चम और निषाद से रहित चार तानें हैं।' [शेष फुट नोट पृ० २४ पर] ' मूर्छनासं श्रितास्तानाश्चतुरशीतिः । तत्र एकोनपंचाशत् षट्स्वरा: पंचत्रिंशत् पंचस्वराः । लक्षणं तु षट् स्वराणां सप्त विधम् । यथा-षड्जर्षभगन्धारहीनाश्चत्वारस्तानाः षड्ज ग्रामे । ___ भरत०, बंबईसंस्करण अध्याय २८, पृ० ४३७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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