Book Title: Surajprakas Part 02
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 414
________________ [ २६ ] तार १५२ धौलकं १८६ तालंग १३९ नगारा १२१, २३०, २४० ताळ १५१, १५२, १८६ नगारौ ५७, ३६० तुरपंग १५२ नग्गारा १२४ तूर ३७, १०१, ११५, २८१ नववती १३१, ३५६ चंब १०१, ३३८ नाटक १५१ बागळ २२३, ३४६, ३६२ नाद १३६ बंबाळ १८, ६३, २३०, २५४, ३४६, निखाख १८९ ३६२ नीसांण १००, १७३ नंबाळा २८१ नौबत ८, ६२, ११०, १४८, २१३, वेवट १५२ २२४, २७१, २८१ थाट १८६ नौबति ५०, ५२, ६६, ६६, ११४, १३६, धुंग १५२ २५७, ३६१ थेइय थेइय तत थेइय ततततत थेइय थेइय नौवती १६६ तत १५२ नत ६० दमाम ३५६ पंचम १८६ दाट १५२ परन १८६ बुंदुभ १३४ परवेज १८६ घईवंत १८९ पसतो ३५१ धुधकट स धुकट धुकटस धुकट १५२। पाड ३५१ [पृ० २५ का फुट नोट ] हारिणाश्वा मार्गी२४. X म प ध X स रे ३०.X स रे x म प ध २५. ग म प x नि स X ३१. नि स X ग म प x कलोप नता पौरवी२६. रे-X ग म ध X स ३२. ध X स रे X म प २७.X ग म प x नि स ३३.X नि स x ग म शुद्ध मध्या हृष्यका२८. स रे X म प ध x ३४. प ध X स रे X म २६. स x ग म प x नि ३५. x नि स x ग म इस प्रकार उनघास षाडव तानों और पैंतीस औडुव तानों को जोड़ने से तानों की संख्या चौरासी होती है।' ' एव मेत एकत्र गम्यमानाश्चतुरशीति भवन्ति। भरत०, बंबई संस्करण, पृ. ४३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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