Book Title: Surajprakas Part 02
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

Previous | Next

Page 430
________________ छंदनाम चूहा (दोहा) पृ० प्रकरण पक्षांक २३२ ७ २४ १२२ ७ ३५३ ३०५ ७ ४०२ १५१ ७ १०६ २३१ ७ २३६ १७० ७ १६४ १५४ ७ ११८ २३२ ७ २४५ १६७ ७ १५४ १६२ ७ १४१ १५६ ७ १२३ नाराच १६५ ७ १४९ [ २ ] प्रथम पंक्ति सति पूजि 'प्रभमल' सुपह सझिबळ महमंद साहरा सुकवि 'मान' 'गोकल' सुकवि सेनापति दूजो सगह सो प्रवीण गायण सकत सोधाखांनां वेल साझ सब हिंदू राजा सिरै हाका मासीसा हुदै हाल कळोहळ बह हुतां प्ररपोट वींछिया उदार पाय पंख पंकजं अनंग बांए लाजि जाइ ईख नैण अंजणं अनट्ट जे नखा प्रवाच्य सूरमंस री नरा अनेक जोध मंत्र प्राय वंदवै वळावळा अराध वीर मंत्र एक साधनं सधोतरा इसौ समाज राज ऊंच दीपियो नीरदरै उरस रूप में उदार राजए उरोजयं करत कनक काम जोति भांण में जसं करत कुंकमं तिलक्क पाणि राजप्रोहितं करत केक चित्र काम रूप भूप रंग रा. करी तुरी चित्रम कळि द्वार द्वार डंबरं कळा बतीस पोस काम जोति तास यौँ जगे कुचं अलक्क छूटि केस वेस जे प्रभा वणी खिरोद कन्न खिनखास धारियं धुजबरं खले बजार हाट खूटि छज्जयं विछायत चुनी सुचंग रूप चै कणस नील क्रांमती छजं चित्रं कटी-स छीण छुध्र घट छाजयं छमासहं मसत्तछाक चाचरै नरं चढ़े। जवाहरं परक्ख जोत के जवाहरी कर जिगंन ज्वाळ होम ज्वाप ग्रहत्तं व्रतं अप डगंस बेड़ियां डहै जंझोर भार जुलां उधूत भूत सा अनेक जोम काळ जेहड़ा दिपंत एम राज द्वार राज नग्र राजमें दुजिद वेद मंत्र दाखि प्रासिवाद उच्चरे दुवार है सरब्ब वास जं बसेख दुज्जयं दुहूं विसाळ चंपडाळ प्रोपयं भुजा इसी .n८ ८ ८ ८ १३३ १५८ ७ १२९ G १५७ १२८ १६५ १५० १२१ १६३ १४४ १६८ ७ १५६ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ १६० १५५ ७ १२० १६९ ७ १६० १६६ ७ १६१ १६६ ७ ५३ ६ ६६ १५७ ७ १२७ १६४ ७ १४६ G. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464