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सूक्तमुक्तावली वने जोवा माटे में केटलाक चोरने हण्या, बेदन नेदन कर्या, पण जीव किहांयें न दीगे.” गुरुए कह्यु के, तुं जो, अरणीना काष्टमां अग्नि के नहीं ? तेमां अग्नि . परंतु केटलीक रूपी वस्तुनो स्वनाव तत्काल नहीं देखावानो होवाथी तेमां अग्नि डे एवं तुरत मालम पडतुं नथी, पण जो तेने (अरणीना काष्टने) लोढाना सरिया प्रमुख साथे घसे तो अग्नि प्रगट थाय बे. रूपी पदार्थमां धाम , तो जीव, के जे श्ररूपी , ते केवी रीते दृष्टीए पडे ? वली जो, सांजल अने विचार कर, के 'उधमां घी,' तिलमां तेल,' अने 'फूलमा सुगंध, 'बे के नही ? बे, बतां केम दृष्टीगोचर नथी श्रावतां. ए संबंधे तारे विचार, जोईए के उपर बतावी ए विगेरे केटलीक रूपी वस्तु देखाती नथी, तेनुं कारण तो तेनो मूल स्वत्वावज तेवो ने तेथी ते देखाती नथी, पण बीजा प्रयोग वडे ते देखी शकाय जे. परंतु जीव तो मूलेज अरूपी बे तो ते केम देखी शकाय ? देखी शकाय ज नहीं, ए तारे निःसंदेह जाणवू. त्यारपडी राजा कहेवा लाग्यो के एक वखत में चोरने कोठीमां घाली तेनुं ढांकणुं बंध करीसीसुढाली तेमां जरा पण पवनमात्रनो संचार न थाय तेवो बंदोबस्त को हतो, तथापि ते चोरनो जीव गयो अने वली विशेषमा बीजा केटलाक कीडा तेमां आवेला मालम पड्या, चोरनो जीव क्यां थईने गयो अने कीमाना जीवो क्यां थईने श्राव्या, ते विषे घणी बारीकीथी तजवीज करी परंतु ए कोठीमां कोई पण जगोए सोयना अग्रनाग जेटलुं पण बिज पडेलु जोवामां श्राव्युं नही. खात्रीपूर्वक कही शकुं बुं के तेमां बीलकुल काएं पडेलुं नहोतुं, तेथी हुँ तो एमज मार्नु बु के 'जीव' ने ज नहीं, ए तो पंचनूत थकी उपजे २ अने लय पामे बे. श्रा बाबतना समाधानमां गुरुमहाराजे तेने जणाव्यु के, रूपी वस्तुनां
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