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अविगुत्ता पूया । जोय न जोगी किमरु लइरे मूढ मायाजालि खूता ॥ ४९ ॥ काया वाया मनु मेहणुरे जोगी जोगवि निद्रा । दंडज गोटी कंथक छोटी ए नहि जोगी मुद्रा ॥ ५० ॥ आगम वेद पुराणरे पोथा मरणे आथा ओथा । आप | ज्ञान विणु अरु सहुरे जाणे थोथा मोथा ॥ ५१ ॥ जिहां तुम्हे जास्यो ते तुम्हे जोउ जे गया ते मत रोओ । आविया जिहां तिहां मनड्डु टालो आप आप पषालो ॥ ५२ ॥ एकलो आसि एकलो जासि म करि जीव ! मोह कूडा । जी कीधे सुख लहिएरे ते करि दया धर्म रुडा ॥ ५३ ॥ भीतरि भंग भलि परि जाणि बाहिर रंग म जोइ । कृत्रिम वस्तु समस्त विचारत बाहिरी बहुली होइ ॥ ५४ ॥ आगिमठाणं जोइ न जोगी जोइ न परमं ज्ञानं । अहवा आवागमनीवारण जोइ न परमं ध्यानं ॥ ५५ ॥ जोगी जोइ न जग विचारा अधिर संसार असारा । देखत पेखत जग जायरे | पुत्र कलत्र परिवारा ॥ ५६ ॥ बांभण पंच न मारिआरे गांमि न लाई आगे । माय न मारी आपणी रे किम जाएवं | सग्गे ॥ ५७ ॥ काचा चणा न चाविआरे जीभ न खंडिअ दांते । आंबा बार न सींचिआ हो किम जाइ लोकंते ? ॥ ५८ ॥ जिणहरि जूअ न खेलिओरे घरि न आणि बेस । साते व्यसन न पोसिआरे दुख न देखइ लेस ॥ ५९ ॥ तेजीय पवन | दामिआरे वाग न खांचि गाढी । नवइ नाद न जाणिआरे गोरपि ते नर काढी ॥ ६० ॥ मांकुड एक न मारिओरे आहुत्ती दीधी न देवे । मांडिओ मूंडे न नामीई हो कांइ करूं कलेवे ॥ ६१ ॥ नागां सउडि निवाईइरे, आगि बलइ हि| मालइ । आटइ लाकड बालीइंहो, जोगी राख न लाइ ॥ ६२ ॥ जोगी जोग धंधोलीओरे, सार काहु न देषइ । जो नर नारि न गांजीओ हो, गोरपी दीधओ लेपइ ॥ ६३ ॥ चोर च्यारि मई मारिआरे, धरिआ त्रिणि व्यापारि ।
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