Book Title: Sukta Muktavali
Author(s): Purvacharya, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 214
________________ सूक्तमुक्तावल्यां अकारादिक्रमः ॥१०४॥ | श्लोकायं अधिकारातः श्लोकाङ्कः । श्लोकाद्य अधिकाराङ्कः श्लोकाङ्कः । श्लोकाचं अधिकाराङ्कः श्लोकाङ्क: चंदा ! हरसिरि ४८ ६ जणणी जम्मुप्पत्ती ७५ जयन्ति वकचूलाद्याः ८९ जणु आवतउ म वारि ८५ जलधेरपि कल्लोलाः ११९ छट्टेणं भत्तेणं जत्थ जलं तत्थ वणं १२४ जल्पन्ति सार्धमन्येन ९९ छित्त्वा पाशमपास्य १८ जत्थ य विसयविराओ १ जस्स कए आहारो ५८ छिन्नमूलो यथा वृक्षो ६ जनिता चोपनेता च १२२ जह य पसूआ नारी १२४ छुट्टय घघुरी १२४ जन्तूनामवनं० १ जहा खरो चंदनभार० ४६ जन्मन्येकत्र दुःखाय ५३ ५ जहा लाहो तहा लोहो ७९ जइ किरइ मनसुद्धी ७१ जन्मस्थानं न खलु ३५२२ जाई रूवं विज्जा जइ मंडलेण भसिभं १२६ जन्मेदं न चिराय १६ १२ जाएण जीवलोए जइविहु दिवसणे ४५ जम्मंतीए सोगो १२३ जागर्ति यावदिह | जइविहु विसमो कालो ५ जयणाइ वट्टमाणो ५८ जागि न जोगी ए नर १२६ जठराग्निः पचत्यन्नं ११ जयणा य धम्मजणणी ५८ जातस्य हि ध्रुवं मृत्यु० १७ जडात्मको धारणया ४१ जयत्यन्यः स कोऽप्यध्वा ४८५ जातः कल्पतरुः ७७ ॥१०४॥ Jain Education e ronal For Private & Personal use only jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258