Book Title: Stotrabhanu Author(s): Nandanvijay Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यन्मूर्तेरभिदर्शनेन नयने शान्ताऽमृतं पाप्नुतो भव्यानामभयाय सोऽस्तु सततं नाभेय आदीश्वरः॥१॥ कृत्वा योऽखिलकमंगाढजलदं दूरं तपोवायुना प्राप्य ज्ञानरविं ददर्श सकलं लोकस्वरूपं भृशम् ॥ गत्वाष्टापदमाप्तबन्धुरपदो नष्टाखिलापत्तिक ऐक्ष्वाको वृषलक्षणो विजयतामादिप्रभुस्सर्वदा ॥२॥ प्रापुः पारमपारजन्मजलधेर्यद्धर्मसन्नौकया प्राप्स्यन्ति प्रमुदाप्नुवन्ति भविनोऽनेके विशुद्धं वरम्॥ विश्वेशानमहं जिनेन्दुमनिशं शान्त्यालयं सुन्दरं दिव्यानन्दनदीपतिं यतिपतिं तं मारुदेवं स्तुवे ॥३॥ ॥ अजितनाथचैत्यवन्दनम् ॥ (तोटकम् ) जगतीभविनामघपद्महिम दृढमोहमहागजकेसरिणम् ॥ अजितं सततं जिनचन्द्रमहं प्रणमामि विभुं नृसुरप्रणतम् ॥१॥ भवकर्मखलानभिजित्य बलादसमाचलमाप पदं रुचिरम् ॥ स विभुः प्रवरोऽभयरोपकरो For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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