Book Title: Stotrabhanu
Author(s): Nandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) निःशेषसत्ततिनतं निरुपद्रवाघम्।। प्राप्तप्रबोधतरणिं स्मरवारिवाह भित्त्वा स्तुवे लमनिशं जिनशीतलेशम् ॥१॥ तुभ्यं नमो निखिलतत्त्वदिवाकराय तुभ्यं नमः प्रहरते जनजन्मरोगम् ॥ तुभ्यं नमः सुरपतिप्रणताय नित्यं तुभ्यं नमोऽखिलभवोपविनाशनाय ॥२॥ निर्दोष शोषक प्ररोषजलाशयस्य नित्यं प्रतोषद सुधर्मवरप्रणेतः ॥ त्वां नाथ ते रुचिरपादसरोजयुग्म आसक्तनन्दनमधुव्रत आस्तुवेऽहम् ॥३॥ ॥श्रीश्रेयांसनाथचैत्यवन्दनम् ॥ ( अनुष्टुब् ) शुद्धधर्मस्य दातार, पातारं जगतां सदा ॥ सर्वभावस्य वेत्तारं, भातारं भुवनत्रये ॥१॥ मुक्तिमार्गस्य देष्टार, पेष्टारं कृत्स्नकर्मणः॥ विश्वविश्वस्य भरि, कतार भव्यशर्मणः ॥२॥ नेतारं जन्मपारस्य, जेतार मोहवैरिणः ॥ श्रीश्रेयांसजिनं भक्त्या, स्तुवे तं विष्णुनन्दनम् ॥३॥ (विभिर्विशेषकम) For Private And Personal Use Only

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