Book Title: Stotrabhanu
Author(s): Nandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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(२२) सा कामितोघं परिपूरयन्ती देव्यम्बिका शर्म सदा प्रदत्ताम् ॥ ४ ॥
॥ श्रीपार्श्वनाथस्तुतिः॥
॥ मालिनी ।। दृढतमतमवारं दुःखभारं हरन्तं निखिलभविकचेतः पङ्कजं पुष्पयन्तम् ।। जगति तततपेोऽशुं कर्मरारराति भविहृदयखवासं स्तौमि तं पार्श्वभानुम् ॥१॥ चुलुककृतभवाब्धि संसृतौ प्रभ्रमन्तं जननिकरमवन्तं मुक्तिमार्ग दिशन्तम् ॥ विदितभुवनभावं भावसिन्धौ सुनावं जिनवरतरवारं नौमि विश्वकसारम् ॥२॥ अमितगमनिवासं गूढतत्त्वप्रकाशं विहतसकलदोषाऽहन्मुखाब्जप्रसूतम् ॥ गहनतरमपारं भव्यभृङ्गालिसेव्यं शमरसपरिपूर्ण जैनसिद्धान्तमीडे ॥३॥ कनकसमसुकान्ते भव्यभव्यं धरन्ति वरतरफणिपीठे नित्यमभ्रे चरन्ति ॥ श्रिततमजिनपाचे विघ्नवारं हरन्ति अतुलममलभद्रं देहि पद्मावति त्वम् ॥४॥
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