Book Title: Stotrabhanu
Author(s): Nandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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अन्धीकृताखिलकुतीर्थिकघूकसक फुल्लौकृताखिलचतुर्विधसङ्घपद्म ॥ दूरीकृताखिलजगजनसङ्घनान्ध योगिस्त्वमत्र तरणे जयतादभीक्ष्णम् ॥२८॥ वक्राद्विनिर्गतगभीरतरस्वनौघतुल्यीकृतामृतपयोधितरङ्गनाद ॥ प्रज्ञाधरीकृतसुरेन्द्रगुरो महौजः श्रेयःश्रियं मुनिप नो वितनु त्वमाशु ॥२९॥ मिथ्यात्वपुद्गधरातलदारणोग्रसीरायमाण जिनदर्शनबीजवप्तः॥ मालायमान हृदये जिनशारदायास्त्वामीश सूक्ष्मसुमते सततं स्तवीमि ॥३०॥ सद्बुद्धिवृद्धिसुलताम्बुद नेमिसूरे स्याहादभृत्सुमतिसिन्धुविधो यशोरम् ॥ त्वदर्शनादुदयमेति नयप्रताप विज्ञान सद्धिविजयं जनता सुऋद्धिम् ॥३१॥ कीर्तिप्रभावकुसुमार्चितपद्मनेत्र वैराग्यचन्दनविलेपनलिप्तचित्त ॥ स्तोत्रं गुणामृतभृतं तव भक्तिरागा
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