Book Title: Stotrabhanu
Author(s): Nandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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(४२) गुरुं सुभक्त्योदयमानतोऽस्मि ॥३॥ चारित्रचिन्तामणिरक्षणाय सदाप्रयासं करुणानिधानम् ॥ गुणाकरं संयमिपूगपूज्यं गुरुं सुभत्त्योदयमानतोऽस्मि ॥४॥ तपः प्रशस्तोरुधनं मुनीन्द्रं सम्पन्नगाम्भीर्यमनल्पवोधम् ॥ विज्ञक्षसन्दोहनिशाधिनाथं गुरुं सुभक्त्योदयमानतोऽस्मि ॥५॥ स्याहादसिन्धूल्लसनोडुनाथं प्रमोदपाथोधिवरं सनाथम् ॥ प्रमादपाथोजहिमं महान्तं गुरुं सुभत्त्योदयमानतोऽस्मि ॥६॥ विज्ञानसौभाग्यधरप्रवीणं गुर्वमिसैवैकनिविष्टचित्तम् ॥ भव्योपकारं रचयन्तमाशु गुरुं सुभक्त्योदयमानतोऽस्मि ॥७॥ विशारदग्रामनभस्तमोरिं सबोधिबीजोद्भववारिवारम् ॥
१, समूह,
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