Book Title: Stotrabhanu
Author(s): Nandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २९ ) ॥ श्रीविजयने भिमूरिपञ्चविंशिका | ॥ उपजातिः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विहाय सर्व प्रभवोपभोगमादाय रम्यं शिवदं व्रतित्वम् ॥ आप सर्वागमपारमाशु श्रीनेमिसूरिं सततं स्तुवे तम् ॥ १ ॥ विदग्धपद्माकरराजहंसं विदग्धदोषौघविशालदावम् ॥ अखण्ड भूव्याप्तवरप्रतापं श्रीनेमिसूरिं प्रणमाम्यजस्त्रम् ॥२॥ वितन्द्रिपङ्कं प्रविमुक्तदार जगज्जनप्रावृषिका वारम् ॥ स्वदेशना रञ्जितभव्यभारं श्रीनेमिसूरिं प्रणमाम्यजत्रम् ॥३॥ समस्तनिक्षेपन याम्बुनाथं स्फुरद्विवेकं स्फुटशर्म हम् ॥ चारुवतं त्यक्तविलासवृन्दं श्रीनेमिसूरिं प्रणमाम्यजस्रम् ॥४॥ उदारबुद्धिं वचनप्रसिद्धिमासन्न सिद्धिं नुवनप्रसिद्धिम् ॥ PO For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48