Book Title: Stotrabhanu
Author(s): Nandanvijay
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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( २१ ) सेव्यश्रीशान्तिनाथा निखिलजनमवन्त्यर्हदाज्ञां धरन्ती ॥ इष्टार्थ पूरयन्ती सकलसुखकरी शर्मवल्लिविंशाला सा निर्वाणी प्रदत्तां शुभमतिभविने श्रेष्ठमानन्दवारम् ॥४॥
|| श्री नेमिनाथस्तुतिः ॥
॥ उपजातिः ||
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गत्वा गिरीन्द्रं गिरिनारमाप्त्वा वरव्रतं देवनरेन्द्रपूज्यम् || मुक्तिप्रियां स्नेहभराय आप स नेनिनाथोऽवतु विश्वभव्यान् ॥१॥ ये कर्मस जलदं महान्तं
जहुः स्ववीर्यातुलवायुवृन्दैः ॥ ते सिद्धिसौधप्रतिभासमानाः सुरासुरस्तुत्यजिना जयन्तु ॥ २ ॥
प्रदग्धदोषौघविशालदावं नीतिप्रमाणप्रथितार्थतत्त्वम् ॥
मिथ्यान्धकारार्यमणं सदैव
जैनागमं श्रेष्ठमहं स्वीमि ॥ ३ ॥
सम्यक्त्वरत्नं प्रमुदा धरन्ती त्रिशूलधात्री वरसङ्घपात्री ॥
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