Book Title: Sramana 2016 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 11
________________ 4 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016 is enough on the erath for man's need but less for man's greed' I पर्यावरण प्रदूषण को मुख्य रूप से निम्नांकित वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है१. वायु प्रदूषण २. जल प्रदूषण ३. मृदा प्रदूषण ४. ध्वनि प्रदूषण ५. रेडियो धर्मिता प्रदूषण, ६. ठोस अपशिष्ट प्रदूषण, ६. वनस्पति प्रदूषण तथा ७. सामाजिकसांस्कृतिक प्रदूषण। वायु प्रदूषण- यह आज के युग की एक ज्वलन्त समस्या है। वायु हमारे जीवन का आधार है क्योंकि सांस हम वायु के कारण ही लेते हैं। एक व्यक्ति की दिन भर में कुल २२००० बार श्वास-प्रश्वास की आवृत्तियां चलती हैं और इन आवृत्तियों में व्यक्ति कुल १६ किलोग्राम वायु ग्रहण करता है। किन्तु क्या हम शुद्ध वायु ग्रहण कर रहे हैं? शुद्ध वायु का ९९ प्रतिशत आक्सीजन, नाइट्रोजन, आर्गन और कार्बनडाई-आक्साइड इन चार गैसों द्वारा निर्मित है। इनके संगठन हैं- प्राकृतिक जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, दलदलीभूमि, आग लगना आदि तथा मनुष्यकृत प्रदूषण जैसे कल-कारखानों से, बड़े-बड़े उद्योगों से, वाहनों से निकलते धुएं, जिसमें कार्बनमोनो-आक्साइड का प्राबल्य होता है। ये सभी जीव-निर्जीव पदार्थों को हानि पहुंचाते हैं। आज वायु प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष तीन करोड़ लोग मृत्यु का शिकार हो रहे हैं। तीन दशकों में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा दुगुनी हुई है। संयुक्त राज्य अमेरिका अकेला विश्व के २४ प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिये जिम्मेदार है। एक अनुमान के अनुसार वायु प्रदूषण की यही गति रही तो अगले सौ वर्षों में पृथ्वी पर कार्बनडाई ऑक्साइड की मात्रा दुगुनी हो जाएगी। परिणामतः पृथ्वी का तापमान बढ़ेगा, ध्रुवों की बर्फ पिघलेगी और समुद्र का जल स्तर बढ़ जाएगा, और विश्व के कई समुद्र तटीय महानगर समुद्र में विलीन हो जाएंगे। जल प्रदूषण - जल ही जीवन है, एक सार्वभौमिक सत्य है।' पृथ्वी पर पाये जाने वाले प्रत्येक जीव का जीवन भी जल पर ही निर्भर होता है। अत: इसकी उपलब्धता सबके लिये नितान्त आवश्यक है। किन्तु आज विश्व की चालीस प्रतिशत आबादी स्वच्छ जल की कमी की समस्या से जूझ रही है। विश्व के आधे नम या आर्द्र क्षेत्र समाप्त हो गये हैं। स्वच्छ जल के भंडारों का १/५ भाग समाप्त हो गया है। परम्परागत स्रोत सूख रहे हैं। आज जल का अपव्यय किया जा रहा है। भूतल से अनेक कल कारखानों को चलाने के लिये जल का दोहन हो रहा है। विकसित देशों में जल का अपव्यय अधिक हो रहा है और उसका कारण है विलासिता पूर्ण जीवन। जहां एक शौचालय से काम चलाया जा सकता है वहां विकसित देशों में प्रत्येक

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