Book Title: Sramana 2016 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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कारक प्रकरण का तुलनात्मक अध्ययन : कच्चायन और पाणिनि ... : 23 सम्बोधन सम्बोधन में कच्चायन और पाणिनि ने प्रथमा विभक्ति का विधान किया है। सामान्य रूप से संस्कृत वैयाकरण इसका कारकत्व स्वीकार नहीं करते हैं, क्योंकि इसमें साक्षात् क्रियान्वयन नहीं होता है। कच्चायन व्याकरण में भी कारक के क्रम में इंसे नहीं रखा गया है। कच्चायन और पाणिनि दोनों ने प्राचीनकाल में प्रयुक्त कारकों के नामों का प्रयोग अपने ग्रन्थों में नहीं किया। अट्ठकथाओं में कारकनामों का उल्लेख इसप्रकार हुआ है- पच्चत्तवचन, उपयोगवचन, करणवचन, सम्पदानवचन, निस्सकवचन, सामिवचन, भुम्मवचन, आमन्तणवचन। इन संज्ञाओं का प्रयोग कच्चायन और मोग्गलायन आदि ने तो नहीं किया, किन्तु बाद के प्रकरण ग्रन्थों तथा कुछ टीका ग्रन्थों में इनका प्रयोग प्रकारान्तर से हुआ है। पाणिनि सूत्रों पर लिखित वार्तिकों में 'प्रत्यात्मवचन' तथा 'उपयोगवचन'आदि का प्रयोग हुआ है, किन्तु पाणिनि ने इनका प्रयोग नहीं किया। प्रस्तुत तुलनात्मक अध्ययन से पालि और संस्कृत भाषा की समीपता का बोध होता है। यही कारण है कि प्रायः विद्वानों का यह मत रहता है कि पालि व्याकरण की परम्परा को हृदयंगम करने के लिए संस्कृत व्याकरण परम्परा का ज्ञान परमावश्यक है। सन्दर्भ:
द्रष्टव्य-On the Aindra School of Grammarian, Prof. A. C. Burmel- पृष्ठ ९-१२, उद्धृत : कच्चायन व्याकरण, भूमिका, पृष्ठ ६७ कच्चायन व्याकरण के सूत्र, वृत्ति तथा उदाहरणों के सम्बन्ध में दो विचारधाराएँ
प्राप्त होती हैंप्रथम विचारधारा
कच्चानेन कतौ योगो, वुत्ति च संघनन्दिना पयोगो ब्रह्मदत्तेन न्यासो विमलबुद्धिना।। (जेम्स एलविस द्वारा Introduction to Kaccayana Grammar में कच्चायनभेद टीका से उद्धृत) अर्थात् कच्चायन ने केवल सूत्र की रचना की थी, वृत्ति संघनन्दि द्वारा रची गई,
प्रयोगों की रचना ब्रह्मदत्त द्वारा हुई और न्यास को विमलबुद्धि ने रचा। द्वितीय विचारधारा
आचरिया पन लक्खणवुत्तिउदाहरणसंखातं इमं कच्चायनगन्धं कच्चायनत्थेरेन कतं ति वदन्ति।।