Book Title: Sramana 2016 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 41
________________ 34 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016 सजगता का उपयुक्त उदाहरण है। दूसरी तरफ अजन्ता की मूर्तियों और चित्रों में नारी के विविधरूप (नर्तकी, वाद्य-वादन और विभिन्न प्रकार के भौतिक क्रियाकलापों में संलग्न) वस्तुत: उस काल में नारी के औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा के महत्त्व को ही दर्शाते हैं। पूर्व मध्यकाल में नारी शिक्षा के विविध आयाम के दर्शन होते हैं, यहाँ आचार्य के सान्निध्य में स्त्रियों को शास्त्राध्ययन एवं तत्त्वचर्चा करते अंकित (देवगढ़, ललितपुर, उ०प्र०, ७वीं से १६वीं शती ई०) किया गया है। साथ ही साथ सरस्वती (देवगढ़),२९ गंगा-यमुना-सरस्वती एवं अभिषेक लक्ष्मी (एलोरा, नवीं शती ई०), महिषमर्दिनी, पार्वती-परिणय (एलोरा, कन्नौज, एटा) एवं अर्द्धनारीश्वर रूप के माध्यम से दैवीय रूप के साथ-ही-साथ अनौपचारिक शिक्षा की अनिवार्यता को महत्त्व दिया गया है, साथ ही नारी के सम्मान, शक्ति और समाज के संचालन में उनकी अहम भूमिका की ओर संकेत किया गया है। सरस्वती के रूप में ज्ञान और संगीत, अभिषेक लक्ष्मी के रूप में धन एवं ऐश्वर्य, महिषमर्दिनी के रूप में नारी शक्ति, पार्वती-परिणय और अर्द्धनारीश्वर रूप में प्रकृति और पुरुष की एकात्मकता से ही सृष्टि के विकास का सम्भव होना रेखांकित हुआ है। अर्थात् पूर्व मध्यकालीन कला में नारी की अनिवार्यता को स्थापित करना ही उस काल की कला का मूल ध्येय था। मध्य काल तक आते-आते भारतीय समाज और उसके वृत्तिगत परिवर्तन का सीधा असर कालगत उपादानों पर दिखलायी पड़ता है। इस काल में क्षेत्रीय विशेषताओं के साथ भारत के विभिन्न पुरास्थलों (खजुराहो, भुवनेश्वर, हेलविड, कुंभारिया, देलवाड़ा इत्यादि) स्थानों पर नारी विषयक अंकन में विविधता और विस्तार दिखलायी पड़ता है जिसमें नारी की सामाजिक स्थिति को विशिष्टताओं के साथ रेखांकित किया गया है, जिसमें उनके धर्म, अर्थ, काम के विभिन्न स्वरूपों को पूरी प्रतिष्ठा के साथ स्थापित किया गया। उदाहरण के लिए खजुराहो (छतरपुर, म.प्र. ९वीं से १२वीं शती ई.) के मन्दिरों पर भारतीय कला की सर्वाधिक और सबसे सुन्दर अप्सराओं को नृत्यांगना, नूपुर बँधवाती, पुत्रबल्लभा, पत्र-लेखना, वीणा-वादन करते, महावर रचाते, चित्र-लेखना, विवस्त्रजधना इत्यादि विविध रूपों में दिखाया गया है जो एक ओर अनौपचारिक शिक्षा का स्वरूप दर्शाती हैं तो दूसरी तरफ अप्सरा मूर्तियों में उनकी सहायक आकृतियों में तुलना करने पर उनके अर्धदैवीय स्वरूप और समाज में विशेष प्रतिष्ठा का संकेत देती हैं। वर्तमान में भी लेखन, चित्रनिर्माण, नृत्य, संगीत, विशिष्ट शिक्षा के प्रतीक हैं। खजुराहो के पार्श्वनाथ मन्दिर की

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