Book Title: Sramana 2016 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 43
________________ 36 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016 ने एक ओर जहाँ तत्कालीन बंगाल के दुर्भिक्ष का मार्मिक दृश्य प्रस्तुत किया है तो वहीं दूसरी ओर शहीद स्मारक में सरोजनी नायडू के माध्यम से नारी के राष्ट्रीय चेतना को भी उद्घाटित किया है। उपरोक्त अध्ययनों से स्पष्ट है कि भारतीय साहित्य एवं कला में काल और क्षेत्र के सन्दर्भ में विशिष्टताओं, व्यावहारिक जागरूकता और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर हमेशा नारी की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है जो वर्तमान की भी आवश्यकता है। भारतीय कला का बाह्य रूप भले ही किसी परम्परा विशेष से अनुप्राणित होता हुआ प्रतीत होता हो, परन्तु आन्तरिक दृष्टि से वह भारतीय संस्कृति की संवाहक ही है। अतएव उन्हें समग्रता में देखना समीचीन होगा। दूसरा महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि जिन विषयों को प्राचीन काल में अनौपचारिक शिक्षा के रूप में देखा गया, वर्तमान में वे ही विषय (गायन, वाद, नृत्य, चित्र-निर्माण, लेखन इत्यादि) शास्त्रीय शिक्षा की मुख्य धाराओं में सम्मिलित हैं और उन्हें वर्तमान के सभी समाज प्राचीन काल की तरह सम्मान प्रदान कर रहे हैं। सन्दर्भ : स्त्रि सञ्चोपयजेरम्ना चरित्वात् । पारस्कर गृह्य सूत्र, २/२० सा क्षोभ वसना हृष्टा नित्यं व्रतपरायणा अग्निं जुहोति स्म तदा मन्त्रविस्कृत मंगला। वासुदेव शरण अग्रवाल, भारतीय कला, वाराणसी, १९६५ आर०सी० शर्मा, “एजुकेशन सिस्टम इन अष्टाध्यायी", सात्वतार्चन (वासुदेव शरण अग्रवाल जन्मशती स्मृति ग्रन्थ), (सम्पा.) एम.एन.पी. तिवारी एवं अन्य, वाराणसी, २००७, पृ० ४३-५४, आभा मिश्रा, "प्राचीन भारत में शिक्षा", वही, पृ० १९६-१९९ ज्योति मिश्रा, "कौटिलीय अर्थशास्त्र में प्रतिविम्बित स्त्रियों की सामाजिक स्थिति'; प्रज्ञा, वर्ष, ५७, अंक १, वाराणसी, २०११-१२, पृ० १२२-१२५ कामसूत्र, १/३/१५ वही, १/३/१६ वही, १/३/२३ नन्वस्मिन् शुकोदर सुकुमारे नलीनपत्रे पदच्छेभत्तया नखैरालिख्यताम |अभिज्ञानशाकुन्तलम्, ३.१९ ज्योत्सना के. कामत, “एजुकेशन ऑफ वुमेन इन एशियण्ट एण्ड मेडिवल इण्डिया', पर्सपेक्टिव इन एजुकेशन (सदाशिव वोड्यार फेलिसिटेशन वाल्यूम), धारवाड, १९८० ; &

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