Book Title: Sramana 2016 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 42
________________ श्रमण परम्परा समन्वित भारतीय परम्परा एवं कला में नारी शिक्षा ...: 35 सरस्वती मूर्ति (उत्तरी अधिष्ठान ) अतिविशिष्ट प्रकार की है। सरस्वती के करों में पुस्तक, वरद, पद्म, अक्षरमाला के साथ ही वीणा वादन करने का अंकन, ज्ञान के साथ ही संगीत की देवी के रूप में प्रस्तुत हुआ है वस्तुतः यह अंकन ज्ञान एवं संगीत की देवी के रूप में नारी शिक्षा के महत्त्व का ही परिचायक है। मध्यकालीन दक्षिण भारतीय कला केन्द्रों में हेलविड, बेलूर, तंजौर, गंगैकोण्डचोलपुरम, श्रवणबेलगोल पर खजुराहो के ही भाँति नारी के विविध रूपों का अंकन हुआ है और यहाँ भी अनौपचारिक शिक्षा के विविध आयामों के दर्शन होते हैं। हेलविड स्थित होयमलेश्वर मन्दिर (१२वीं शती ई., कर्नाटक) से नृत्यांगना, वाद्य वादन करती अप्सरायें, विभिन्न लौकिक क्रियाकलापों में संलग्न आकृतियों के साथ ही आखेटिका और नृत्यरत सरस्वती का अंकन हुआ है जो नारी शिक्षा की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है। आखेटिका के अंकन में नारी के आखेट में दक्ष होने तथा नृत्यरत सरस्वती को चतुर्भुज रूप में दर्शाया गया है। सरस्वती नृत्य - मुद्रा (पताका एवं राजहस्त मुद्रा) में अक्षमाला एवं पुस्तक से युक्त है और वाहन के रूप में मयूर का अंकन हुआ है। जो वस्तुतः ज्ञान, संगीत एवं नृत्य का समन्वित प्रस्तुतिकरण है। जिननाथ मंदिर (श्रवणबेलगोल, कर्नाटक, १२वीं शती ई०) की पश्चिमी भित्ति पर कायोत्सर्ग में खड़े पार्श्वनाथ के दोनों ओर समान आकार वाली नृत्यांगना, वेणूवादन एवं मृदंगवादन करती नारी आकृतियों के साथ ही चामरधारिणी एवं विवस्त्रजधना की आकृतियाँ भी नारी के सम्मान और अनौपचारिक शिक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं | आधुनिक भारत में नारी शिक्षा और नारियों के विविध रूपों को कलाकारों ने अपनीअपनी दृष्टि से देखने का प्रयास किया है जिनमें राजा रवि वर्मा (१८४८-१९०६), अवनीन्द्रनाथ टैगोर (१८७१-१९५१), यामिनी राय (१८८७-१९७२), देवी प्रसाद राय चौधुरी (१८९९ - १९७५) और प्रदोष दास गुप्ता (१९१२-१९९०) के नाम प्रमुख हैं। रवि वर्मा में चित्रों में पौराणिक एवं कालिदास की नायिकाओं के माध्यम से वात्सल्य, प्रेम, शिक्षा एवं संगीत और रानी पद्मावती का नारी अस्मिता की रक्षा के लिए ‘जौहर' करने का दृश्यांकन इस संदर्भ में पुष्टता प्रदान करता है जो उस काल (ब्रिटिश साम्राज्य ) के अन्तर्गत भारतीय चेतना को पुनर्स्थापित करने के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण था। इसी प्रकार अवनीन्द्र नाथ टैगोर ने 'भारत-माता' के अंकन के माध्यम से राष्ट्रीय जागरण का संदेश दिया है। इस चित्र में गेरुआ वस्त्र धारण किये साध्वी चतुर्भुजा स्त्री के रूप में भारत माता अक्षमाला, वस्त्र, पुस्तक एवं धान्य मंजरी को करो में धारण किये प्रदर्शित हैं जो शिक्षा की अनिवार्यता के साथ ही निरन्तरता एवं स्वयं पर विश्वास का प्रतीक है। इसी प्रकार देवी प्रसाद राय चौधुरी

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