Book Title: Sramana 2016 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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28 : श्रमण, वर्ष 67, अंक 1, जनवरी-मार्च, 2016 प्रिय सखी प्रियंवदा दुष्यन्त को पत्र लिखने के निमित्त प्रयुक्त सामग्री और लिखने की शैली का निर्देश करते हुए कहती है कि 'हे सखी शुक के उदर समानं कोमल इस नलनी-पत्र (कमल-पत्र) पर एक-एक पद अलग-अलग करके नाखून से लिखो। उपर्युक्त सन्दर्भ पाँचवी शती ई. के भारत में नारी के शिक्षित होने के साथ ही काव्य निर्माण में कुशल होने को प्रमाणित करता है। दण्डी कृत 'दशकुमारचरित्र' में भी वात्स्यायन के अनुरूप स्त्री को अनौपचारिक शिक्षा के साथ ही व्याकरण, दर्शन और नक्षत्र विज्ञान से युक्त होना बतलाया गया है। अर्थशास्त्र के बाद दामोदर गुप्ता कृत कुट्टिनिमतम् (नवीं शती ई.) में गणिका वृत्ति का उल्लेख मिलता है। जिसमें भरत कृत नाट्यशास्त्र के कामशास्त्र के अध्ययन करने का उल्लेख हआ है, साथ ही कला, संगीत, वृक्षायुर्वेद, चित्रकारी, सूचिकार्य, काष्ठकर्म, धातुकर्म, मृण्मय कर्म, भोजन-निर्माण, वाद्य वादन, गायन एवं नृत्य में पारंगत होने के सन्दर्भ प्राप्त होते हैं। इस काल में संस्कृत काव्य निर्माण में कई स्त्री कवियों यथाविकटनीतम्ब तथा प्रसिद्ध कवि राजशेखर (काव्य-मीमांसा के रचयिता) की पत्नी के नामों का मिलना इस बात की ओर संकेत करता है कि पूर्वमध्य-काल में भी नारी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता था। परन्तु ९वीं-१०वीं शती ई० के बाद (मध्य-काल) वैदिकपौराणिक परम्परा में नारी शिक्षा के प्रति सामान्यतया कोई उत्साहजनक उल्लेख नहीं प्राप्त होते हैं। सम्भव है इसका कारण नारियों के औपचारिक शिक्षा के स्थान पर अनौपचारिक शिक्षा पर ज्यादा जोर देकर उनके एक सफल गृहणी के रूप में निर्माण ही प्रमुख उद्देश्य रह गया हो। वस्तुत: शिक्षा को सार्वजनिक बनाने तथा शिक्षा और शिक्षण संस्थाओं को समृद्ध करने में छठी शती ई०पू० की बौद्धिक क्रान्ति और निवृत्ति-मार्गी श्रमण परम्परा विशेषतः बौद्ध धर्म का योगदान महत्त्वपूर्ण है। बौद्धों ने वर्ण-जाति एवं वर्ग विहीन संघ के स्थापना एवं घर-घर जाकर जनमानस को जगाने का काम किया। बौद्ध संघ ने भिक्षु-भिक्षुणी के सामूहिक शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध किया, साथ ही बौद्ध उपासकों एवं जनसामान्य के लिए बौद्ध संघ एवं मठों में शिक्षा का प्रबन्ध किया। जिसके प्रमाण नालन्दा एवं विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों के रूप में देखे जा सकते हैं। बौद्ध शिक्षा के प्रचार-प्रसार का दूसरा कारण यह भी रहा है कि उन्होंने भाषा के रूप में वैदिक संस्कृत के स्थान- पर जनभाषा लौकिक संस्कृत (पालि) को महत्त्व देकर जनसामान्य की भाषा में शिक्षित करना प्रारंभ किया और कालान्तर में संस्कृत भाषा का भी प्रयोग किया। प्रारम्भिक बौद्ध पालि साहित्य में नारियों की स्थिति के उत्कर्ष का स्वरूप प्राप्त होता है। जहाँ बुद्ध द्वारा चुने गये चार गुरुओं में एक स्त्री का भी