Book Title: Sramana 2016 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 14
________________ भारतीय दार्शनिक परम्परा में पारिस्थितिकीः जैन परम्परा के विशेष सन्दर्भ में : 7 दर्शनों में उनसे मिलते-जुलते पदों का व्यवहार हुआ है। न्याय-वैशेषिक तथा वेदान्त में हमें पर्यावरणीय नीतिशास्त्र के घटकों का समुचित उल्लेख नहीं मिलता। सभी वैदिक दर्शनों का उत्स वेद है। अत: आरम्भ हम वेदों से ही करेंगे। वेद विश्व-साहित्य के सर्व प्रामाणिक तथा प्राचीनतम ग्रंथ हैं जिनमें पर्यावरण संरक्षण की चेतना स्पष्टतः परिलक्षित होती है। वैदिक परम्परा की विश्वीय दृष्टि “माताभूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्या'२ तथा “वसुधैव कुटुम्बकम्' के भाव को जीवन के 'सत्यम् शिवं सुन्दरम्' का आदर्श मानती है। वेदों को धर्म का मूल कहा गया है "वेदोऽखिलो धर्ममूलम्"। यहाँ धर्म से तात्पर्य पर्यावरण की आस्था से है क्योंकि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का वेदों से सम्बन्ध है। वेद के ऋषियों को यह ज्ञात था कि यदि भूमि, अन्तरिक्ष, जल, वनस्पति आदि दूषित होंगे तो इन पर निर्भर रहने वाले प्राणियों का जीवन संकटापन्न होगा। यजुर्वेद के शान्ति पाठ में तीनों लोकों में जल, वनस्पति, औषधि तथा सभी देवों की शांति के लिए प्रार्थना की गई है। "ऊँ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष: शान्ति: पृथ्वी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्ति। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्वह्निः शान्ति, सर्वशान्ति, शान्तिरेवशान्तिः सा मा शान्तिरेधिः। यह प्रार्थना विश्व में शान्ति बनाये रखने के साथ पर्यावरण प्रबन्धन के प्रति एक सन्देश है। वैदिक वाङ्मय में पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि वायु इन पाँच तत्त्वों को प्रदूषण-मुक्त बनाने की दृष्टि से इनकी अनेकविध उपासना की गई है। वेदों में मानव तथा प्रकृति के मध्य अन्योन्याश्रित सम्बन्ध माना गया है। पर्यावरण के सन्दर्भ में वेदों में परिधि, परिभू, परिवृत्त आदि शब्द प्रयुक्त मिलते हैं। वहां परिधि शब्द सुरक्षा रूप प्रकार अथवा परकोटा आदि अर्थों में आया है। परमपिता परमात्मा ने जब जीवों की उत्पत्ति की और स्वयं जीवों को अपना परिधि बनाया तब स्वयं को भी परिधि बनाया। प्राचीन युग में पर्यावरण के सभी स्रोतों- पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और वनस्पति आदि को देवता मानकर इनका अर्चन और संरक्षण किया जाता था। पर्जन्य, मित्र, वरुण, चन्द्र और सूर्य आदि पाँच तत्त्व पर्यावरण संरक्षक होने के नाते हमारे पिता तुल्य माने गये हैं। पर्जन्य वृष्टि द्वारा जल सिंचन कर हमारी रक्षा करता है, मित्र प्राण वायु के रूप में हमारा जीवन रक्षक है, वरुण देव जल प्रदान कर हमारे जीवन को गतिशील बनाते हैं, चन्द्रमा औषधियों के स्वामी हैं, पृथ्वी पर आती इनकी अमृतमयी किरणों से पर्यावरण की रक्षा होती है। सूर्य की किरणों से मनुष्य को संजीवनी शक्ति मिलती है। अथर्ववेद में पर्यावरण के संघटक तीन तत्त्वों को माना गया है- जल, वायु और औषधियां। ये भूमि को घेरे हुए हैं, और मानव मात्र को प्रसन्नता देते हैं, अतः इन्हें 'छन्दस्' (छन्द) कहा गया है।

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