Book Title: Sramana 2016 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ भारतीय दार्शनिक परम्परा में पारिस्थितिकी : जैन परम्परा के विशेष सन्दर्भ में : 3 में उत्सर्जित वायु मण्डल में बढ़ती कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, नाइट्रस आक्साइड, हाइड्रोफ्लोरो कार्बन जैसे गैसों की मात्रा का अधिक होना है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस समय दुनियां का तापमान १५ डिग्री सेंटीग्रेड है और वर्ष २१०० तक इसमें १.५ से ६ डिग्री तक वृद्धि हो सकती है। परिणमतः तटवर्ती क्षेत्रों का जलमग्न होना तथा जैव विविधता के ह्रास के आसन्न संकट हमारे सामने हैं। प्राकृतिक बर्फ चाहे वह हिमखण्ड के रूप में हो या विशाल ग्लेशियरों के रूप में बढ़ते ताप के कारण तेजी से पिघल रही है। हिमालय के ७६ प्रतिशत ग्लेशियर तीव्र गति से सिकुड़ रहे हैं। पिछले पाँच दशकों में माउण्ट एवरेस्ट के ग्लेशियर २ से ५ किलो मीटर तक सिकुड़ गये हैं। ग्रीनलैण्ड तथा पश्चिमी अंटार्कटिका क्षेत्र के पिघलने से समुद्री जलस्तर में १२ -२० फुट की बढ़ोत्तरी हो सकती है जिससे विश्व के करीब ३० तटीय क्षेत्रों के जलमग्न होने की सम्भावना बढ़ गयी है। पर्यावरण प्रदूषण से जैव विविधता का लगातार ह्रास हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी पर जल-थल क्षेत्रों में करीब १.४० करोड़ तक सूक्ष्म जीवों वनस्पतियों, पेड़-पौधों व वन्य जीवों की प्रजातियाँ हैं। रिपोर्ट के अनुसार इनमें से ज्ञात प्रजातियाँ १७.५ लाख से कुछ ही ज्यादा हैं। लगभग डेढ़ दशक पूर्व कराये गये सर्वेक्षण के मुताबिक भारतीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय इन क्षेत्रों में जीव-जन्तुओं की करीब ७५ हजार, पेड़-पौधों की ४५ हजार, स्तनपायी जीवों की ३४०, समुद्री सीप (घोंघे ) व अन्य सूक्ष्म जीव (ज्ञात) लगभग ५० हजार कीड़े-मकोड़ों की प्रजातियाँ मानता है । इनके अलावा वनस्पतिक जगत् में १५ हजार पुष्पीय पौधे, पाँच हजार समुद्री वनस्पतियाँ (शैवाल आदि), २० हजार फफूंद (फंगस), १६ हजार लाइकेन, २७ हजार ब्रायोफाइट्स और लगभग ६०० टेरिडोफाईट्स प्रजातियाँ है । वैज्ञानिकों का कहना है कि विकास कार्यों के कारण गति जितनी तेज है उससे सैकड़ों ज्ञात तथा लाखों अज्ञात प्रजातियों के विनाश का खतरा पैदा हो चुका है। पर्यावरण प्रदूषण - वैज्ञानिक दृष्टि से प्रदूषण - वायु, जल एवं मृदा की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक विशेषताओं का अवांछनीय परिवर्तन है जो मनुष्य और अन्य जन्तुओं, पौधों एवं प्राकृतिक सम्पदाओं को किसी न किसी रूप में नुकसान पहुंचाता है। इनका कारण मनुष्य स्वयं है। यदि मानव बुद्धिमत्ता पूर्वक प्रकृति में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग/उपभोग अपनी आवश्यकता के अनुरूप करे तो उसे कभी संसाधनों की कमी न हो किन्तु उसकी आकाश के समान अनन्त इच्छा और लालच उसके लिये पर्यावरणीय संकट उत्पन्न करते हैं। महात्मा गांधी ने कहा था 'There

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 114