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१२१ स्पष्ट निर्देश किया है। कर्ता प्रशस्ति में वे लिखते हैं “धर्म रूपी पृथ्वी का उद्धार करने में महावराह के समान जिनचन्द्रसूरि के शिष्य आम्रदेवसूरि हुए। उनके शिष्य नेमिचन्द्रसूरि, जो विजयसेन गणधर से कनिष्ठ और यशोदेवसूरि से ज्येष्ठ थे, ने सिद्धान्तरूपी रत्नाकर से रत्नों का चयन करके प्रवचनसारोद्धार की रचना की।" इस प्रकार प्रवचनसारोद्धार की इस कर्ता प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु परम्परा में केवल अपने प्रगुरु जिनचन्द्रसूरि और गुरु आम्रदेवसूरि के ही नामों का निर्देश किया है, उनके गच्छ आदि का विस्तृत विवरण नहीं दिया है किन्तु अपने द्वारा ही रचित अनंतनाहचरियं की कर्ता प्रशस्ति में अपने गच्छ और गुरु परम्परा का अधिक विस्तृत विवरण दिया है। फिर भी उपरोक्त दोनों प्रशस्तियों से ग्रन्थकार के सांसारिक जीवन के सम्बन्ध में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं होती है।
अनंतनाहचरियं से इतना विशेष ज्ञात होता है कि वे श्वेताम्बर परम्परा के बृहद् गच्छ के थे । इस गच्छ इसका प्रारम्भ देवसरि से बताया गया है। इन देवसरि के शिष्य आदित्यदेवसूरि हुए। आदित्यदेवसूरि के शिष्य आनन्ददेवसूरि और आनन्ददेवसूरि के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि (प्रथम) हुए। उसमें इन्हें सिद्धान्त के रहस्यों का ज्ञाता भी कहा गया है। इन्होंने लघुवीरचरित, उत्तराध्ययनवृत्ति, आख्यानकमणिकोष एवं सलचूड़चरित आदि ग्रन्थों की रचना की थी। प्रशस्ति में इन नेमिचन्द्रसूरि का जिस प्रकार से गुणगान किया गया है उससे यही सिद्ध होता है कि प्रवचनसारोद्धार के कर्ता ये नेमिचन्द्रसरि (प्रथम) नहीं हैं। क्योंकि ग्रन्थकार प्रशस्ति में स्वयं अपनी प्रशंसा इस रूप में नहीं कर सकता है। इसी प्रशस्ति में आगे आनन्ददेवसरि के दूसरे दो शिष्यों प्रद्योतनसूरि और जिनचन्द्रसूरि का उल्लेख भी हुआ है और इन जिनचन्द्रसूरि के आम्रदेवसूरि और श्रीचन्दसूरि ऐसे दो शिष्य हुए। ये आम्रदेवसूरि आख्यानकमणिकोष की वृत्ति के रचयिता हैं। प्रशस्ति के अनुसार इन्हीं आम्रदेवसरि के शिष्यों में हरिभद्रसूरि, विजयसेनसूरि, यशोदेवसूरि और नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) आदि हुए, यही नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) इस प्रवचनसारोद्धार के कर्ता हैं।
अपने अनंतनाहचरियं की ग्रन्थ प्रशस्ति में इन नेमिचन्द्रसूरि ने अपने को मन्दमति कहा है इससे भी यही सिद्ध होता है कि ये नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) ही उस अनंतनाहचरियं के एवं प्रवचनसारोद्धार नामक प्रस्तुत कृति के कर्ता हैं। नेमिचन्द्रसूरि ने उस प्रशस्ति में अपने जिन अन्य गुरु भ्राताओं का निर्देश किया है उनमें यशोदेवसूरि को लक्षण, छन्द, अलंकार, तर्क, साहित्य और सिद्धान्त का ज्ञाता कहा गया है। ज्ञातव्य है कि ये यशोदेवसूरि ही प्रस्तुत कृति के संशोधक भी थे। इस समग्र चर्चा के आधार पर प्रस्तुत कृति के कर्ता नेमीचन्द्रसूरि (द्वितीय) की जो गुरु परम्परा
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