Book Title: Sramana 2001 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 215
________________ २०९ अध्याय के पश्चात् १० पृष्ठों में शोधग्रन्थ का उपसंहार प्रस्तुत किया गया है। ग्रन्थ के अन्त में ४ परिशिष्ट दिये गये हैं। प्रथम परिशिष्ट में तीर्थङ्कर विशेषण और द्वितीय परिशिष्ट में कतिपय अनुठे स्तोत्रों की चर्चा है। परिशिष्ट तीन में शोधप्रबन्ध में प्रयुक्त जैन स्तोत्रों और अन्तिम परिशिष्ट में शोधप्रबन्ध में प्रयुक्त सहायक ग्रन्थों की सूची प्रस्तुत है। डॉ० धर्मचन्द्र जैन के निर्देश में जैन स्तोत्र साहित्य पर ऐसे प्रामाणिक ग्रन्थ रचना कर साध्वी हेमप्रभा जी ने महान् कार्य किया है जिसके लिये साहित्य-जगत् उनका चिरऋणी रहेगा। श्रेष्ठ कागज पर मुद्रित इस ग्रन्थ की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक तथा मुद्रण कलापूर्ण है। पक्की बाइंडिंग युक्त ३०० पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य मात्र २०० रुपये रखना प्रकाशक संस्था की उदारता का द्योतक है। धर्मसमन्वय उद्गाता महामति प्राणनाथकृत प्रकाशहिन्दुस्तानी का साहित्यिक मूल्यांकन : लेखिका- कमला शर्मा, प्रकाशक- श्री प्राणनाथ मिशन, ७२ सिद्धार्थ इन्क्लेव, रिंग रोड, नयी दिल्ली ११००१४; प्रथम संस्करण १९९३ ई०; आकाररायल आठपेजी; पृ० १५+१७९+२ रंगीन चित्र; मूल्य- ५०.०० रुपये मात्र। महामति प्राणनाथ का प्रादुर्भाव सत्रहवीं शताब्दी (ई०सन् १६१८-१६९४) में हुआ। उनकी वाणी का संकलन “कुलजम स्वरूप' के नाम से जाना जाता है। इसमें कुल १४ ग्रन्थ हैं। उनकी वाणी का दर्शन, भक्ति-साधना एवं धर्म समन्वय के साथ-साथ साहित्यिक दृष्टि से भी बड़ा महत्त्व है। महामति प्राणनाथ और उनके साहित्य तथा प्रणामी सम्प्रदाय पर अब तक अनेक शोधप्रबन्ध लिखे और प्रकाशित किये जा चुके हैं। प्रस्तुत शोधग्रन्थ उसी शृङ्खला की एक कड़ी है। यह ग्रन्थ कमला शर्मा द्वारा लिखित "महामति प्राणनाथकृत प्रकाश हिन्दुस्तानी का साहित्यिक मूल्याङ्कन" का मुद्रित रूप है जिस पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली द्वारा उन्हें पी-एच०डी० की उपाधि प्रदान की गयी। प्रस्तुत ग्रन्थ १० अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में सद्गुरु निजानन्द स्वामी श्री देवचन्द्रजी का संक्षिप्त परिचय है। द्वितीय अध्याय महामति प्राणनाथ के जीवन से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत प्रारम्भिक जीवनी, सद्गुरुमिलन और दीक्षा, अरब यात्रा, दीवानपद, धर्माभिमान, औरङ्गजेब से धर्मचर्चा, हरिद्वार प्रसंग, महाराजा छत्रसाल से भेंट, धार्मिक दृष्टिकोण, सांस्कृतिक महत्त्व, राजनैतिक जीवन, सामाजिक दृष्टिकोण और महामति के धामगमन की चर्चा है। तृतीय अध्याय में महामति की वाणी का विस्तृत परिचय दिया गया है। इसमें कुलजमस्वरूप के विषय, कुलजमस्वरूप में संकलित वाणीग्रन्थ, श्रीरास, षती, श्रीप्रकाश गुजराती, कलस गुजराती, प्रकाश हिन्दुस्तानी, कलस हिन्दुस्तानी, सनंध, किरंतन, खुलासा, खिलवत, परिक्रमा, सागर, सिनगार, सिन्धी, मारफत सागर, कयामतनामा छोटा और कयामतनामा बड़ा की चर्चा है। इसी अध्याय में महामति के अप्रकाशित साहित्य- शेख मीरांजी का किस्सा, कुरान के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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