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साहित्य-सत्कार
जैनस्तोत्र साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन : लेखिका- साध्वी डॉ० हेमप्रभा 'हिमांशु'; आकार- डिमाई; पृष्ठ २०+२८४+४ रेखाचित्र; प्रकाशक- मुनिश्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन, पीपलिया बाजार, व्यावर ३०५९०१ (राजस्थान); प्रथम संस्करण २००१; मूल्य २००.०० रुपये।
प्रस्तुत पुस्तक साध्वी हेमप्रभाजी 'हिमांशु' द्वारा लिखित शोधप्रबन्ध “जैनस्तोत्र साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन' का मुद्रित रूप है जिस पर उन्हें जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर द्वारा पी-एच०डी० की उपाधि प्रदान की गयी। शोधप्रबन्ध ५ अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय- स्तोत्र-साहित्य की भारतीय-परम्परा और जैन द्रष्टि में भक्ति का उद्गम, स्तोत्र रचना, स्तोत्र का आशय, स्तोत्र के प्रकार, तन्त्र-मन्त्र
और स्तोत्र : एक विवेचन, स्तोत्र-साहित्य का उद्भव एवं विकास, जैनदृष्टि से भक्ति, भक्ति एवं स्तुति के उद्देश्य, जिनभक्ति का आधार : गुण; वैदिक, बौद्ध एवं जैन-परम्परा में स्तोत्र का तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत है। द्वितीय अध्याय जैन स्तोत्र-साहित्य : एक पर्यवेक्षण नाम से है जिसके अन्तर्गत आगमों की स्तुतिपरकता, सूत्रकृताङ्ग में वीरत्थुइ, अङ्ग एवं उपाङ्गसूत्रों में 'नमोत्थुणं', जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र में स्तुति का उल्लेख, नन्दीसूत्र में स्तुति, आवश्यकसूत्र में 'लोगस्स', प्राकृत-भाषा में रचित प्रमुख स्तोत्र, संस्कृत-प्राकृत में मिश्रित स्तोत्र, अपभ्रंश में रचित प्रमुख स्तोत्र, संस्कृत-भाषा में रचित प्रमुख स्तोत्र, एकाधिक भाषाओं में रचित प्रमुख स्तोत्र, प्रमुख आराध्य देवियाँ एवं उनके नाम पर रचित स्तोत्र और वर्तमान युग में रचे गये प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के स्तोत्रों का सविस्तार विवेचन है। शोधप्रबन्ध के तृतीय अध्याय में आगमों के आलोक में स्तोत्र-साहित्य की समीक्षा प्रस्तुत की गयी है। इसके अन्तर्गत आगमों की भाषा-शैली, विषयवस्तु, स्तोत्र-साहित्य के विकास में आगमों की उपजीव्यता, स्तोत्रों में आराध्य तीर्थङ्कर देव आदि की लगभग ५० पृष्ठों में विस्तृत विवेचना है। चतुर्थ अध्याय में जैन स्तोत्रों की काव्यशास्त्रीय समीक्षा प्रस्तुत है। इसके अन्तर्गत स्तुतिकाव्य बनाम मुक्तक काव्य, जीवन में नैसर्गिक लयात्मकता- गीतात्मकता, रस एवं उसके प्रकार, गुण एवं उनके प्रकार, अलङ्कार, चित्र अलङ्कार, शब्द भक्ति, रीति एवं छन्द का लगभग ८० पृष्ठों में वर्णन किया गया है। पञ्चम अध्याय जैनस्तोत्रों में दार्शनिक तत्त्व-समीक्षा नाम से है जिसके अन्तर्गत ५० पृष्ठों में स्तोत्रों का लक्ष्य-दर्शन की प्रस्तुति, दार्शनिक स्तोत्र, जैन दर्शन का प्रतिपादन, इतरदर्शनों का निरसन आदि की सविस्तार चर्चा है। पांचवें
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