________________
१९६ पुरातत्त्व संग्रहालय का निरीक्षण किया और उसके नियामक श्री सत्येन्द्र मोहन जैन से इसके विकास के रूप-रेखा की विस्तृत चर्चा की। अपने उद्बोधन में डॉ० सिंघवी ने इतिहास के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए इस सम्बन्ध में पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा किये जा रहे शोधकार्यों की प्रशंसा की और यह आश्वासन दिया कि वे इस संस्थान को मान्य विश्वविद्यालय के रूप में विकसित करने का पूरा प्रयास करेंगे। लोकार्पण समारोह में स्थानीय जैन समाज के सभी समुदायों के विशिष्ट व्यक्ति उपस्थित थे।
इस अवसर पर सिंघवी जी द्वारा संस्थान के ५ नये प्रकाशनों का भी विमोचन किया गया
१. उत्तराध्ययनसूत्र : एक परिशीलन (गुजराती अनुवाद) २. जैन धर्म में अहिंसा ३. समाधिमरण ४. जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन ५. अलंकार दप्पण
म प्राय प्रनिता आकार श्रीजा की पावन लिग्राम
SH
শাসন রিঠা আনোয়ারা লন্ত রাস্তা
83 28.
HE
20999
(उत्तराध्ययनसूत्र : एक परिशीलन 'गुजराती अनुवाद' का लोकार्पण करते हुए डॉ० लक्ष्मीमल सिंघवी, डॉ० सिंघवी के बगल में खड़े हैं प्रो० सागरमल जैन एवं कुंवर विजयानन्द सिंह)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org